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तथा ८० दिने या दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने उक्त सिद्धांत पाठ विरुद्ध पर्युषण पर्व और १०० दिने दूसरे कार्त्तिक अधिक मास में कार्त्तिक चातुर्मासिक प्रतिक्रमण कृत्यादि तपगच्छ की समाचारी का श्री मोहनलाल जी महाराज को पक्षपात नहीं था । इसी लिये उन महात्मा ने पन्याम श्री यशोमुनि जी आदि शिष्य प्रशिष्यादि को शास्त्र संमत ५० दिने पर्युषण आदि खरतरगच्छ की समाचारी करादी और हर्षमुनि जी आदि को भी खरतरगच्छ की समाचारी करने की आज्ञा दी परंतु उपर्युक्त तपगच्छ की समाचारी के पक्षपात कदाग्रह से हर्षमुनि जी आदि शिष्य प्रशिष्यों ने खरतरगच्छ की समाचारी करने संबंधी श्रीगुरु महाराज के वचन नहीं अंगीकार किये तएव श्रीगुरु महाराज की आज्ञा भंग दोष के भागी तथा उपर्युक्त शास्त्र पठों की आज्ञा भंग दोष के भागी हर्षमुनि जी आदि हैं, यदि शास्त्रसंमत इस सत्य कथन से अमिति हो तो आगमपाठों से तपगच्छ की उपर्युक्त समाचारी सत्य बतलावें अन्यथा श्रीमोहनचरित्र में आगे पृष्ठ ४१५ से ४१६ तक हर्ष मुनि जी ने तपगच्छ की समाचारी करने से अपना मान प्रतिष्ठादि स्वार्थ कदाग्रह को छुपाने के लिये पंडित रमापति की रचना द्वारा विचारांध की भाँति छपवाया है कि
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संघ में नाना भेद जो देखा जाता है वह स्वार्थ कदाग्रही लोगों का बनाया है १ " तथा तीर्थकरों के शरीर तुल्य संघ में भेद पाड़े वो जैन किस तरह हो २ " और " संघ में भेद गधे के सिंग समान हैं ३ " इत्यादि पूर्वापर उचित अनुचित छपवाकर अपना अध्यात्मिक पणा जो दिखलाया है इससे कौन बुद्धिमान् हर्षमुनिजी आदि को तपगच्छ की समाचारी करने से सत्कार मान प्रतिष्ठादि स्वार्थ कदाग्रह भेदरहित कहेगा ? क्योंकि सत्कार मान प्रतिष्ठादि स्वार्थ कदाग्रह हर्षमुनिजी आदि के अंतःकरण में नहीं
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