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धर्म-शासन विज्ञप्ति होते हुए भी रेलों में भीड़ को बढ़ाते हैं। किस संस्था के साधु रेल, बस और साधारण गाड़ियों का मुख भी नहीं देखते और अपना बोम अपने कन्धों पर उठा कर पदाति ही यात्रा करते हैं।
किस संस्था के साधु वीक्षा के लिये बालकों को बहकाते हैं अथवा उनके अभिभावकों को धन देकर बालक को लेते हैं, कौन छल से दीक्षा देते हैं, किनकी दीक्षा में बड़ी बड़ी जायदादों के उत्तराधिकार के लोभ से दीक्षार्थी स्वयमेव प्रविष्ट होते हैं।
किस संस्था के आचार्य जिनके कि पास धन के नाम एक वराटिका भी नहीं है और भवन के नाम टूटी फूटो पर्णशाला भी नहीं है, अन्न संग्रह के नाम कल के लिये भो भोजन सामग्री नहीं है जहाँ साबुन तेल स्नानादि से शरीर का मार्जन नहीं होता है न वस्त्र धुलाये जाते हैं
और क्षौर कर्म के स्थान में जहाँ हाथ से ही केश उखाड़े जाते हैं-के पास शतशः दीक्षार्थी बाल युवा वृद्ध स्त्री पुरुष हाथ जोड़े तारयस्व नाथ ! वारयस्व नाथ !! यह कहते हुए प्रति दिन खड़े रहते हैं।
किस संस्था के उपदेशक साधु चढ़ावा आदि के रूप में गृहस्थों से अपने उपदेश का मूल्य प्राप्त करते हैं। किस संस्था के साधु अमूल्य उपदेश देते हैं और उच्चतम शिक्षा भी, जिसमें शब्द शास्त्र त अथवा समस्त दर्शन शास्त्र साहित्य इतिहास आदि सम्मिलित हों दी जाती है।
अस्तु किं बहुना-सरकार धर्म संस्थाओं के उनही प्रकारों को देखे जो कि राज सत्ता को आशातीत लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं और किसी भी रूप में कोई भी हानि न पहुंचाते हों।
जो धर्म संस्था राज शासन में सहायिका है उसको धर्म प्रचार के लिये स्वतन्त्र छोड़ दे और किन्हीं कानूनों के बन्धन से उसको न जकड़े अपितु उसको आपचि से बचाती रहे।
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