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धर्म-शासन
गुरुकुलों को रीति के अनुसार भिक्षा वृत्ति से जिसमें कि सूक्ष्माति सूक्ष्म भी प्राणो की हिंसा न होती हो निर्वाह करता है शब्द शाख, दर्शन शास्त्र भादि का सम्यक् तथा अध्ययन करता है। पूर्ण अहिंसक होने की, पूर्ण ब्रह्मचारी और पूर्ण परिग्रह त्यागी होने की प्रतिज्ञा करता है। संसार के किसी प्रपत्र में भाग न लेकर सरकार के ऊपर अपना किचिन्मात्र भी भार नहीं डालता । यही नहीं सरकार के बड़े से बड़े काम में हाथ बटाता है। अर्थात् चोरी, झूठी गवाही, चूत क्रीडा मचादि व्यसन आदिक जो महान् से महान् अपराध हैं जिनके लिए कि पुलिस और न्यायाधीश बढ़ाने पड़ते हैं-को उपदेश देकर प्रतिज्ञा करा कर सक्रिय मिटाता है। घर का एक सामान्य व्यक्ति न रह कर समस्त विश्व रूपी एक नगर का उत्तम नागरिक बन जाता है। बताइये बालदीक्षा अव्यवस्थाजनक हुई या अव्यवस्था विध्वंसक। दीक्षा ने बालक का उसके परिवार का और संसार का तथा राज्य का क्या अहित किया। दीक्षा से बालक कहीं लोक से बाहर तो चला हो नहीं जाता उस बाल तपस्वी का दर्शन करने के लिए उसका उपदेश सुनने के लिए उसके परिवार वाले उसके पास आते जाते ही रहते हैं। परिवार से फिर वह छिना गया कैसे समझा जाता है । पहिले वह केवल अपने परिवार का ही काम करता था अब वह इतना शक्तिशाली बन गया है कि अपने परिवार के साथ और अनेकों परिवारों का उपकार करता है। अतः ऐसी बाल दीक्षाओं के निरोध के लिए कानून बनाना धर्म का गला घोंटना है।
जिन धर्म संस्थाओं की बड़ी २ जायदादें हैं उनके उत्तराधिकार के लिए जहाँ बाल दीक्षाएँ होतो हों, जहाँ दीक्षित केवल अनाचार और अव्यवस्था के ही पृष्ठ पोषक हों वहाँ बाल दोक्षाएँ निरुद्ध होनी अत्यापश्यकीय है।
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