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धर्म-शासन में शिल्प कला के तत्व विद्यमान हों उसको बालिग होने की अवस्था तक गणित विद्या में घसीटना उसको उभयतः भ्रष्ट करना है। गणित का तो वह विशेषज्ञ हो नहीं सकता, शिल्प कला के शिक्षा की जो वाल्यावस्था थी वह भी उसके हाथ से निकल जाती है।
यही बात-सांसारिक बालक और पारलौकिक बालक में घटती है जिस बालक के मस्तिष्क में पारलौकिक तत्व विद्यमान हैं जिनकी कि परीक्षा वैज्ञानिक आचार्य भले प्रकार कर सकते हैं बालकों को संसार के विवाहादि बन्धनों में जकड़-दिया जावे तो वह संसारी तो बन ही नहीं सकता अपनी समस्त बालायु को भी धर्म शिक्षा से वश्चित रखता है। देखा गया है कि जो पुरुष स्वभाव से ही वैराग्यवान् थे और विवाह बन्धन से जकड़ दिए गये हैं बड़े छटपटाते हैं। पत्नी स्वभाव से संसार में आसक्त हैं पति अनासक्त है यह पेमेल जोड़ा आयु भर दुःख पाता
है।
शक्का होती है बालक (नाबालिग ) ही दीक्षित क्यों किये जाते हैं। देखिए शिक्षा बालावस्था में ही होती है युवावस्था में शिक्षा का अपूर्ण भाग पूर्ण होता रहता है और शिक्षा के आनन्द के अनुभव का श्रीगणेश हो जाता है। वृद्धावस्था में केवळ निर्मलाऽऽनन्द का ही आस्वादन किया जाता है।
पारलौकिक जैसी कठिन शिक्षा के लिए केवल बुद्दों को ही भर्ती किया जावे तो क्या बूढ़े तोते पढ़ सकते हैं। पहिले सोपान दण्ड को छोड़ कर दूसरे पर कैसे चढ़ा जा सकता है। विद्या बालकों को ही पढ़ाई जा सकती है न कि वृद्धों को।
___ कानून अव्यवस्था को रोकने के लिए है उक्त तेरापन्थ संस्था बाल दीक्षा देकर क्या अव्यवस्था करती है।
बालक अपने उत्कट भाव से माता पिता आदिकों की आज्ञा से और आचार्यवर्य की कृपा से दीक्षा ग्रहण कर लेता है पुरातन
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