SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक्क, अथवा धर्मना दरवाजानी कुंचीयोना कहेवा बालानां नाम, अने ते सिद्धांतनां नाम तो, अवश्यज पुछीशुं ? केमके जे आकुंचीयो छे ते, अमारा जाणवा प्रमाणे ढूंढकोए मालां बीश सूत्र छे तेमां छेज नही ? तो पछी क्यांथी बतावी शकवाना छो ? वली आश्चर्य तो एज छे के, जेना घरनुं यत्किंचित् लेड भागो छो, तेनो मेल (अर्थात हिशाबे) तमाराधी मली सकतो नथी एटले, यद्वा तद्वा बकी तेमनेज चोरीनु आल मुकवा प्रयत्न करो छो, तो पछी तमारा जेवा गंठीछोडा ते बीजा कोने गणना ? केमके तमो पृष्ट. २११ मां एम लखो छो के, मस्तानी भैशोए सूत्रोना शुद्ध जलने, ग्रंथरूपी शींगडांथी डोहली कादवमिश्र कर्तुं छे. ।। परंतु आ अमारा किंचित् मात्र करेला विचारथी, विचार करी जूवो के, मस्तानी भैशोनुं आचारण करवा वाला, तमारा ढूंढको छे के बीजा कोइ छे ? केमके प्रथम तो ढूंढनी पार्वतीए, गणधर महाराजाओथी पण विपरीत थइने, मस्तानी भैसनुं आचारण करी जैन सिद्धांतोना सैंकडो पृष्टोंना लेखने निरर्थक ठराव्या । अने आ सम्यक्त्त नामना पुस्तकनी रचना करी बधाए जैन तत्त्वोनुं विपरीतपणुं करवाथी तमो भैसानु आचरण करवा तैयार थया छो ? केमके सर्व जैनाचार्योने तुछ समजी, आपणी मूढमतिनेज आगल मुकवा तैयार थया छो. । माटे तमारी जैनतत्व समजवामां बुद्धिनी प्रबलता केटली छे, अने तमो जैनतत्वोना विषयमां शुं समजेला छो, तेनुं दिग्दर्शन थवा माटे, सूक्ष्मविचाराने छोडी दइ, केवल स्थूल विषयोनो विचार करी बताaar, क्रमाक्रम पणानो पण विचार छोडीने सूची धराना न्यायी विचार करवाने उतरी पडीश. ।। के जेथी वाचकवर्गने aadi अने समजतां पण कंटालो आवे नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy