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________________ थइ घणा आगल वधवाने जाय छे, परंतु एक पण वातनो विचार पुक्तपणाथी कर्या विना जैन सिद्धांतोथी, तेमज जैन ग्रंथोथी तदन विपरीतपणे मोटा मोटा विचारो करवाने उत्तरी पडे छे. । अने परमार्थ समज्या विना महान् महान् आचार्योने, तेमज गणधर महापुरुषोने पण, दूषित करीने जे मनमां आवे छे ते बकी कहाडे छे. । जेमके सत्यार्थचंद्रोदय पृष्ट ७५ ओ. ७ मां ढूंढनी पार्वतीए बकी काहयुं छे के. सूत्रोंमें ठाम ठाम जिन पदार्थोसे हमारा विशेष करके आत्मीय स्वार्थभी सिद्ध नहीं होता है उनका विस्तार सैंकडे पृष्टों पर लिखधरा है. ... अही विचार करवानो एटलोज छे के, गणधर महाराजाओथी पण, ढूंढनी पार्वतीनी बुद्धि, केटली बधी आगल दोडीने गइ छ । केमके शास्त्रोमां तो अर्बु लखेलुं छे के, एक सूत्रनो अर्थ पण अनंत छे, एवी महा गंभीरवाणीथी गणधर महाराजाओए सूत्रनी गूंथनी करेली छे, ते महा गंभीरवाणीने, सैंकडो पृष्टोंपर निरर्थकपणे कहेतां, ढूंढनी काइ पण विचार कर्यों होय तेम जणातु नथी. । ते ढूंढनी पार्वतीनुंज अनुकरण, शाह वाडीलाल मोतीलाले पण कर्यु होय एम जणाय छे, परंतु आपणा दरजानो विचार बिलकुल कर्यो नथी, अने जे मनमां आव्युं ते बकी काहडी, केवल समज्या विना अडदा लु भइडी काहडयु छे. । परंतु एक पण महापुरुषनो आश्रय लइ लेख करवामां उतरेला होय एम जणातु नथी । केमके तेोज उपोदघातना पृष्ट. १२ मा लखे छे के, ज्ञाननो दरवाजो केम खोलवो स्हेने माटे तेओ कुंचियो मुकता गया छे, एम लखी. पृष्ट. १३ मां लखे छे के, वाचक ए महाजनोनां नाम पुछवा इछा करशे, परंतु ज्यां सर्व महाजनोनी नोंध एक सरखी छे त्यां कोतुं नाम देव । एम कही छेवटमां कहे छे के जो वाचकने नामनो कहोवाट न होय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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