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________________ ४४ जेमके, जमाली, सर्व जैन मतनी मान्यता राखवा छतां, तेमज जैननी सर्व क्रियामा उच्च पदने धारण करवा छता, एकज नयना विषयमां, भ्रमित थइ समजाववा छतां पण समजी सक्या नही, तेथी तेमणे निन्हपणामां गणी काहडया. । कहेवानुंए छे के, जमाली जेवा महा तपस्वी, अने जननी सर्व क्रियामां प्रवीण छतां, एक नयमां भ्रमित थवाथी, तेमणे शास्त्रकारो ए निन्हव ( अर्थात् वीतरागना वचन लोपी)कह्या.।तो पछी, नाम निक्षेप, १ स्थापना निक्षेप, २ अने द्रव्य निक्षेपने, ३ मान्य राखनारी, जे नैगमादिक द्रव्यार्थिक चार नयोनो, लोप करवा बेठेला, अमारा ढूंढक भाइयो छे, तेमणे अमारे शुं ! निन्हव कहेवा ? अथवा अर्द्धदग्ध कहेवा ? केमके, निन्हव तो जे एकाद नयनो लोप करवावाला होय तेने कहेवाय छे, अने अमारा ढूंढक भाइयो तो, आ निक्षेपना विषयमां, चार नयोनो लोप करवा बैठेला छे, अने नयो तो मूलनी सात छ, वास्ते अर्द्धदग्ध कहेतां पण विचार थइ पडे छे, वास्ते निर्णय करवानुं वाचक वर्गने सांपी दइ अमारा लेखने बंध करीये छे. ॥ ॥ इति सप्तनय विषये तत्त्वाऽतत्त्व विचारः॥. - ॥ हवे चार निक्षेप विषये किंचित् तत्त्वा तत्त्वविचार करी बतावीए छे. पृष्ट. ५४ थी. ते. पृष्ट. ७१ मुधीमां वाडीलाल शाह नो लेख नीचे मुजव. [७-८-९-१० ] चार निक्षेप * १ आचार निक्षेप जैन मतमा उपयोगी भाग भजवे छे. एनी गेर समजथी निरारंभी जैन बर्गमां, एक मूर्ति पूजक पंथ उभो थयो छे, के जे मूर्ति पूजाके जेमां हिंसा मुख्यत्वे छे, अने धर्मके जेमां जीवदया मुख्यत्वे छे. ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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