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________________ २११ साधुना दर्शन करवा जता, तेमज मृतक साधुना शरीरनो दाह करवाने भेळा थतां, संसार खातानो सो संबंध छे ! केमके साधुनी अने साधर्मि भाइयोनी, भक्ति श्रावकोए करवी, एवी भगवंतनी आज्ञानुं ओलंघन करी, मूढताथी दया नामना ध्रुव ताराना मुसलने पकडी, ज्यां त्यां धर्मना कर्त्तव्यो करतां पण, संसार खातो, संसार खातो, संसार खातो, कही धिटाइज प्रगट करो छो? ए तमारी वात विचारशक्ति पामेलानी पंक्तिवाली तो नहीज गणाय, एवो विचार तमारेज करवो पडशे. परंतु अमारे करवानी जरुर नहीं पडे. केम के अमो तो जे जे उपर बतावेलां कार्यों परोपकारनी दृष्टिथी, अथवा धर्मनी दृथिष्टी, करीये छीये ते भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे करतां, अमारा जन्म जीवतव्यनी साफल्यताने माटेन करीये छीये. । एज प्रमाणे वीतरागनी भव्य मुर्तिनी, द्रव्य, अने भावथी, श्रावको पूजा करे छ ते पण, लोभ अने लालचविना, जन्म जीवतव्यनी साफल्यताने माटेज करे छे । वास्ते अमो कोइ रीतथी पण ठगाता नथी । परंतु तेमनी भक्तिथी विपरीत थयेला छे तेज उगाय छे. । हवे अमो आ बिषयने न लंबावतां इहांपर समाप्ति करी आ ग्रंथनी पण समाप्तिज करीये छीये. । इत्यलंपलवितेन. ॥ इतिश्री मद्विजयानंद सूरीश्वर लघुशिष्येनाऽमरमुनिना दया नाम्नः ध्रुव तारा विषये दर्शितो विचारः समाप्तो जातः ॥ दुहा.॥ ॥ कयों छे आ ग्रंथमां, समकित तनो विचार। वली प्रमाण ने नयतनो, दरसाव्यो छे सार ॥ १ ॥ निक्षेपाना विषयमां, विविध बोध विस्तार । कियो युक्ति प्रयुक्तिथी, भविजन आनंदकार || २ ॥ ढूंढक सिद्धांत कारना, समाकित सडसठ बोल । लखी बताव्या छे सही, तेनो करज्यो तोल ॥ ३ ॥ जिन मूर्त्तिना भक्तने, मूढ कहे मिथ्यात्व ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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