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________________ । २०६ पण गौणपणे राखी, सर्व प्रकारथी नवीन रसोइ करावी, धौ श्राक्क तो तेमनी भक्तिज करशे, तेपण धर्मनीज खातर करसे, । केमके गमेतेवो श्रावक होय, अने गमेतेवी अवस्थामां पडेलो होय, तोपण ते अनुकंपार्नु पात्र थतो ज नथी परंतु भक्तिनुंज पात्र गणेलो छ, ॥ इति भक्तिधर्म आश्रित प्रथम दृष्टांत ॥ ॥ २ साधुजीने, वीजेगाम वंदना करवा, टोटु मेळवीने जतां, अथवा पोहचाडवाने जतां, अथवा गामनी नजीक आवेलाने लेवा जतां, अथवा मोटी तपस्या करेला साधुने वंदना करवा जतां, अथवा संथारो करेलो होय ते साधुने वंदना करवा जता, गाडी, घोडा, बैल, विगरेनो अनेक प्रकारनो आरंभ लक्षमां लीधा वगर आपणो तरवानो मार्ग छे, एम समजीने, श्रावको, साधुनी भक्तिज कर छ, । साधुनी भक्ति करवी एवी भगवंतनी आज्ञा छे, तेपण लाभाऽलाभना कारणवालीज छे, तेथी ते श्रावकोने, भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे वर्तन करतां, अने तेमां आरंभ थवा छतां पण, ते कल्याण मार्गनाज पात्र बने छे. । परंतु दुर्गतिना पात्र बनता नथी. । एजप्रमाणे जिनमूर्तिना पूजनमां, किंचित्मात्रनो आरंभ थवा छतां पण, भगवंतनी भक्ति श्रावकोए, द्रव्य, अने भाव, बन्ने प्रकारथी करवी, एवी भगबंसनी लाभाऽलाभवाली आज्ञाप्रमाणे, भक्ति करवावाला श्रावको, कल्याण मार्गनाज पात्र बने छ, । बाकी जे बीजा अनेक प्रकारना, रागी, द्वेषी, देवोनी, मान्यता राखे, शीतला पूजे, गनगोर करे, इत्यादिक अनेक प्रकारथी केवल संसारना मुखार्थे, सर्वकुछ करे. । अने आपणा तरणतारण वीतरागदेवनी मूर्ति देखीने, जेम देवाघिष्टित परशुरामनो कुहाडो, क्षत्रियोने देखीने, बलवा लागी जतो इतो तेम, वीतराग देव उपर द्वेषाधिष्टित हृदयवाला थइ, हृदयमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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