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________________ अनेक प्रकारनो लाभज, तेमां जोवामां आवे छे, परंतु तेमा हानि किंचित् मात्र वास्तविक पणे जोवामां आवती नथी । वास्ते आ विचारमा “ साधु आश्रित, ” अने " श्रावक आश्रित" केटलांक दृष्टांतो आपीने, समजुति करी बतावीये छीये, ॥ ॥१ जूवोके, दस्तने रोकवो नही, एवी भगवाननी आज्ञा छे, अने हाजतवाला साधुने, वर्षता मेघमां पण बहार भूमि जावु पडे छे अने तेमां अदृष्टिगत असंख्याता अप्कायना जीवोनी विराधना त्रिविधे त्रिविधेना पञ्चखानवाला साधुथी पण थाय छे तोपण विराध कथतो नथी पण आराधकज गणेलो छे. ॥ ॥ इति प्रथमदृष्टांत ॥ ॥२ साधुने, भगवाननी आज्ञाथी, आठ मासतक मर्यादा प्रमाणे विहार करवो, अने वचमां नदी आवे तो, विधिसहित ऊतरवी, पण एक जगोपर बेसबुं नही. । हवे इहां दया नामना धूव तारा तरफ, दृष्टि टेकीने चालवावालो एक साधु, भडकीने, गुरुने पण केहवा लाग्यो के, । अरे गुरुजी, त्रिविधे त्रिविधेयी पञ्चखान करीने पण, तमो, आ नदीने ऊतरी, छ कायनी विराधना केम करोछो ? अने संयमथी भ्रष्ट केम थावोछो ?॥ ॥ गुरुजी-अरे भाइ शिष्य, भगवाननी आज्ञा छे के, एक जगोपर रेह नही, वास्ते नदी उतरतां, संयमथी भ्रष्ट थवातुं नथी, पण, एक जगोपर वास करवाथीज, संयमथी भ्रष्ट थवाय छे, वास्ते ए गामने छोडीने बीजे गाम चाल. ॥ ॥ चेलो-एवी भगवाननी आज्ञा होयज केम ? अने होत तो दया नामना धूवतारा तरफज दृष्टि टेकीने चालवानु बताव्यु केम ? ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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