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________________ १८९ प्रकरण ७ मुं. मिध्यात्व. ॥ ढूंढक- पृष्ट, १६५ मां मिथ्यात्वना नीचे समजाबेला २५ भेद समजीने, तनो संघट्टो न थवा देवा साबचेती राखवी, एम कही. पृष्ट. १७१ मां ( ३ ) अभिनिवेशिक. || नी व्याख्या करतां लखे छे के - श्री वीतराग देवनां वचनो उत्थापे - उत्सूत्र परु पणा* करे ते मनुष्य अभिनिवेशिक मिथ्या त्वी समजवा. इत्यादि । ॥ विचार — ढूंढ़कभाइ, पृष्ट. १९९ मां, मिथ्यात्वना दशमा भेदमां लखे छे के, (१०) वीतरागे कां ते करतां अधिक परुषे ते दशमं अधिक परुपणा मिथ्यात्व. । 1 एम मिध्यात्वनो दशमो भेद लखी बताववा छतां ॥ जैनना एक सिद्धांतमां, एकंदरना सर्वाला रूपथी, एमना कहेबा प्रमाणे नहि कला एवा, आ मिथ्यात्वना तो २५ भेद. | * आ चक्रनी टीपमां लखे छे के - ( १ ) तिखुत्तोना पाठमा अने बीजी घणी जगाए ' इयं ' शब्द खुल्ला ज्ञानना अर्थंमां वपरायेलो छतां तेने — मूर्ति, ना अर्थमां लइने, तथा, निक्षेप, नो तद्दन अवलो अर्थ लइने, केटलाक साधुए, पथरानी पूजा परुपी, अने पृष्टिमां ग्रंथो रच्या. ॥ ॥ ( २ ) युरोपियन पंडित ' हर्मनजेकोबांए ' आचारांग सूत्रो अंग्रेजी तरजुमो कर्यो तेमां, जैन साधुने मांस खावुं कल्पे, एत्रो अर्थ कर्यो. आ बन्ने दृष्टांतमां फरक एटलोज के. पेहला दृष्टांतमां जाणी बुझीने 'अपराध, थयो छे, अने बीजा दृष्टांतमां, गुरुगमना अभावे अज्ञान छे । अंधकारमा कोइक दिवस दीपक आवशे, पण घोल । फक्क अजवालामां बेठेला की की वगरनी आंखवालाने, प्रचंड सूर्यपण शुं करी शकशे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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