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|| जिन प्रतिमा उपर स्तवन चोपाइनी देशीमां ॥
नमेले पाप ; जेहने
जेहने जिनवरनो नही जाप, तेहनुं पासुं जिनवरशुं नही रंग, तेहनो कदी न कीजे संग. १ । जेहने नही बहाला वीतराग, ते मुक्तिनो न लहे ताग; । जेहने भगवंत शुं नही भाव, तेहनी कुण सांभलशे राव. २ || जेहने प्रतिमाशु नहीं प्रेम मेनुं मुखड़े जोइये केम, जेहने प्रतिमाशुं नही प्रीत; तेतो पामे नहि समकित ३ || जेहने प्रतिमा शुं छे वेर तेहनी कहो शी थाशे पेर, । जेहने जिन प्रतिमा नही पूज्य, आगम बोले तेह अबूज्य । ४ । नाम स्थापना द्रव्य ने भाव, प्रभुने पूजो सही प्रस्ताव; । जे नर पूजे जिननां बिंब, ते लहे अविचल पद अविलंब । ५ । पूजा छे मुक्तिनो पंथ, नित नित भाषे इम भगवंत, सहि एक नर 'क विना निरधार प्रतिमा छे त्रिभुवनमां सार. ६ ॥ सतर अट्टाणुं आषाढी बीज, उज्ज्वल कीधुं छे बोधवीज; इम कहे उदयरतन उवज्जाय, प्रेमे पूजो प्रभुना पाय. ॥ ७ ॥ इति जिन प्रतिमा स्तवनं.
श्री संप्रतिराजानुं स्तवन ॥
राग आशावरी ॥
धन धन संप्रति साचो राजा, जेणे कीधां उत्तम कामरेः । सवालाख प्रासाद करावी, कलियुग राख्यं नामरे. धन. १ । वीर संवत्सर संवत् बीजे, तेरोत्तरे रविवार रे; । माहा शुद्धि आठमी बिंब भरावी, सफल कियो अवताररे धन. २ || श्री पद्म प्रभ मूरति थापी, सकल तीरथ शणगाररे; । कलियुग कल्पतरु ए
१ एक नरकनुं स्थान छोडीने बाकी बीजी बधी जगो पर शास्वताऽ शास्वता जिन बि बिराजमान छे अने तेनो पाठ पण सिद्धांतोमां जगो जगो पर छे,
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