SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५९ खीना काममां आवे छे, स्त्री लिंग छे, ए कारणथी साडी कहे, प रंतु वस्त्रके साइलो न कहे || ॥ विचार - आमां विचारवानुं, आ छट्टी नये, गुण लिंगने शुं जोयुं ? | अने प्रथमनी पांच नयोनी साथै, कयो संबंध धराबी, कया विषयी व्याख्या करीने बतावी । अने अमारा ढूंढ़कनी मान्यता, एमां कया प्रकारनी थयेली समजवी || ॥ ७ एवंभूत नय - कार्यना उपयोग तरफज दृष्टि राखे छे, जेमके - दाणा जोखनारो माणस, लाभोजी, बेयोजी, त्रणोजी, ए शब्दाने पकडी राखे छे, पण दाणाके, त्राजवाने, पकडी राखतो नथी । एने तो धारणतुंज काम छे. ॥ ॥ विचार - आसामी नय, शब्होंने पकड़ी राखे छे, तेज प्रमाणे शब्दनय पण, शब्दोना तरफज लक्ष राखवावाळी छे, तेमां, अने आसामी नयमां, विशेष शुं ! अने अमारा दृढकोनी आमां मान्यता शुं । तेनो विचार पण कांइ जणाव्यो नथी. ॥ ए प्रथम प्रकारथी अमारा ढूंढकनी नयो विषयनी मान्यता ॥ ॥ हवे अमो, ढूँढके ज्ञान उपर उतारीने बतावेली जे नयो छे तेनो विचार करीने बतावीये छीये. ।। ॥ जूवो. पृष्ट. ८४ थी ते ८६ तक- पृ. ८४ । ओ, ५ थी-नैगम नय प्रमाणे ज्ञान - बिचारा गामडीआओ, नवतत्त्व - छकायना बोल, के, एकाद थोकडो पाठे करनार साधुने, के, एकाद अंग्रेजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy