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________________ १३७ उत्तरोत्तर अधिक अधिक पूजाय छे, अने जे भ्रष्ट थाय छे तेने, फरीथी कोइ वंदना पण करतुं नथी, वास्ते आ निक्षेपना विषयमां, सिद्धांतकार- कहे ए छे के, जेना भाव निक्षप उपादेय, तेना चारो निक्षेप उपादेय, अने जेनो भाव निक्षेप उपादेय नथी, तेना त्रण निक्षेप पण उपादेय नथी. ॥ ॥ जूवो के तमोए प्रथम दीक्षा लेवावाला गृहस्थमा, साधुपदनो नामनिक्षेप करी, व्यवहार नयना मते, साधुपणाना भावने अंगीकार करी, वंदना करवा तैयार थया हता. । ज्यारे ते साधुमां व्यवहार मात्रथी पण तमा, साधुनी क्रिया नथी देखता तो, तेने वंदनादिक पण करता नथी, । अने दीक्षा देती वखते, जे साधुपद.. ना नामनो निक्षेप करी, वंदना करी हती ते पण, व्यवहारनयना मतीज करी हती. तो अब विचार करो के, ढूंढनी पार्वतीए, अने ढूंढके, नामादिक त्रण निक्षेप, अवस्तु, अने उपयोग विनाना, लख्या हता ते, योग्य लख्या हता के अयोग्य ! अमो तो भार दइने कही शकीये छीये के, निक्षेप शुं चिज छे, ते, अमारा ढूंढकोने, आज मुधी पण खबर पडेली नथी, तेथी चोफेर गोतांज खाधा करे छ. । हजु पण अमो कहीये छीये के अमारा वे पुस्तकना लेखथी पण तेओ, परंपराना गुरुनो आश्रय लीधा वगर यथार्थपणे निक्षेपोना विषयमां दिशा मात्र, पण अवलोकन करी शकवाना नथी. अने वर्तमान कालमां आपणे, साधुना चारे निक्षेपोने, जे मान आपीये छीये तेमां, व्यवहारनयना मतथी, प्रथपना त्रण निक्षेपोना वर्तनने जोइनेज, मान आपाये छीये. । केमके चोथो भावनिक्षेप जे छे, तेतो कोइ अतिशय ज्ञानी रिना, बीजो कोइ पुरुष जोइ शकतो ज नथी, तो पछी अमारा ढूंढको, शा उपरथी कहे छे के, त्रण निक्षेपो, निरर्थक, अने अवस्तु, अने उपयोग विनाना छे. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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