SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३१ वाननी भक्तिनो, अंकुरो उत्पन्न थयो हसे, ते पुरुषोज तेमना चारो निक्षेप उपर, प्रीति धारण करी, जेवी रीते आदरपणाथी योग्य रीते मान आपशे, ते प्रमाणे वीजाथी नहि आपी सकाय, तेमां तो तेमनी, संसारनी बहुलतानुंज, कारण समवानुं छे. ॥ ॥ आ चार निक्षेपोर्नु स्वरूप, अमारा गणधर महा पुरुषोए, चार लीटीना लेख मात्रमां, कोइ एवा गूढ विषयथी गूंथन करीने बताव्यु छे के, तेना स्वरूपथी सर्वथा प्रकारथी अजाण, आखी दुनीया होवा छतां पण, तेमनाज वचननु, सामान्य प्रकारथी अनुकरण करीनेज वर्ती रही छे. एम अमो प्रत्यक्षपणे जोइ रह्या छीये. जूवो के,-१ शिवजीना भक्तो, शिवजीने, अपणा उपादेयरूपे मानी, तेमना चारो निक्षेपने, मान आपी रह्या छे १ ।। तेज प्रमाणे कृष्नना भक्तो, कृष्नना, चारो निक्षेपने, मान आपी रह्या छे. २॥ एवो पुरुष, आ दुनीयामां, कयो बाकी रहेलो छ के, जेने आपनी उपादेय वस्तुना, चारो निक्षेपने, घटतुं मान आपेलं नथी ! तमो कहेशो के, मूर्तिना उथ्यापक, १ मुसलमान, २ क्रिश्चन, ३ दयानंदवालाओए, मूर्त्तिने, मान आपेलं नथी. । ते पण तमारु कहेवू जुठज छे. । केमके परमार्थने समज्या वगर, तेओए पण, मुखेथी मात्र जुठो पोकारज करेलो छे,कारण के, तेओए पण,जे वस्तुने आपना उपादेयरूपे मानी छे, तेना चारो निक्षेपाने आपणी आपणी योग्यता प्रमाणे, मानज आपेटु छ. ।।। जुवो के, मुसलमानो पण, अल्लाना नामने जपे छे, ते अल्लाना, नाम निक्षेपनोज विषय छे. १ ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy