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________________ . १२१ इति देशविरतिरूप सामायिकना २ स्थापनानिक्षे. पर्नु स्वरूप ॥ ॥ हवे देशविरति सामायिकना, त्रिजा द्रव्यनिक्षेपर्ने, स्वरूप लखीने बतावीये छीये ॥ ॥जेवी रीते ३ द्रव्य आवश्यकने, १ आगम, २ नो आगमना भेदथी, सूत्रना आधारभूत साधुना आश्रयने लइ, वर्णन करीने बतावेलो छे, तेज प्रमाणे अहिं, सामायिक मूत्रना पाठनो उच्चारण करवावाला, श्रावकने पण, द्रव्य सामायिकना लेखामां गणबानो छे.॥ ॥'जेमके 'कोइ न्याय नीतिना चलनथी, अंतःकरणनी शुद्धीबालो श्रावक, सामायिक सूत्रनो पाठ, शुद्धपणे अस्खलित, उच्चारण करी रह्यो छे, परंतु तेनो उपयोग, ते मूत्र पाठना अर्थमां नहीं होवाथी, तेना पाठना उच्चारण मात्रने, १ आगमथी द्रव्य सामायिक रूपे समजवो. । कारणके जद्यपि ते सामायिकसूचना पाठने भणवावालो श्रावक, तेना अर्थने परिपूर्ण पणे जाणे छे, परंतु ते अवसर उपर, ते सूत्रना अर्थमां, तेनो उपयोग नहीं होवाथी, अबस्तु रूपे गणी काढेलो छे. । त्यां एवो पाठ छे के " अणुवयोगो दव मितिकट्ट " एनो अर्थ ए छे के-सूत्र पाठना अर्थमां, जे वखते भणवावालानो उपयोग ना होय, ते वखते ते सूत्र द्रव्य स्वरूपर्ने छ। ॥आ जे मत छे ते, 'शब्दादिक' त्रण नयोनो मत छे. १ तेथी त्यां सात नयोनी मान्यता, अवतरण करीने बतायुं छे, ते प्रमाणे आ द्रव्य सामायिकन। करवावाला साथे पण, घटावी लेबु.। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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