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प्राक्कथन
महारावल वीरदेव से सहायता मिली थीं। खण्डेरावने नवापुरा को अपना केन्द्र बनाया। स्वण्डेराव दभाड़ेके इस आक्रमणके समय दामाजी गायकवाड़ नामक सैनिक उसके साथ था । उसने इस आक्रमणके समय अपनी वीरताका परिचय दिखाया था । दभाड़े और गायकवाड़ का यह लूटपाट विक्रम १७६३ से १७७६ पर्यन्त चलता रहा । परन्तु इसी वर्ष इन्होंने बालपुर नामक ग्राममें पूर्ण विजय प्राप्त किया । इसी वर्ष खण्डेरावने सतारा लौटकर दामाजी गायकवाड़की वीरताकी सूचना शाहुको दी। शाहुने दामाजीको समशेर बहादुर की उपाधि प्रदान की । परन्तु खण्डेराव दाभाड़े और दामाजीराव गायकवाड़ दोनों की मृत्यु थोड़ेही दिनों बाद हुई । अनन्तर खण्डेराव दाभाड़ेका - उत्तराधिकारी उसका पुत्र त्र्यम्बकराव और दामाजीका उत्तराधिकारी उसका पुत्र पीलाजीराव हुआ । उसके आगे चलकर दभाड़े परिवार के साथ लाट देशका इतिहास श्रोत प्रोत है।
शाहुको अपने तीन विश्वस्त और स्वामी भक्त सेवक की मृत्यु घटना देखनेको मिली। शाहुने अपने तीनों स्वर्गीय सेवको के उत्तराधिकारिओंको उनके पिताके पदपर नियुक्त किया । जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं, कि बालाजी विश्वनाथका पुत्र बाजीराव पेशवा बना । उसी प्रकार खण्डेरावका पुत्र त्र्यम्बकराव दाभाड़े सेनापति और दामाजीका भतीजा पीलाजी समसेर बहादुर बना । परन्तु तीनों महत्वाकांक्षी और नवयुवक थे । साथही उनमें आत्माभिमान कूट कूट कर भरा था । शाहुने बाजीरावको पेशवा बनानेके साथही प्रधान सेनापति बनाया। जिसने यम्बकराव मनको मलीन किया । और वह एक प्रकारसे पेशवाका विरोधी बन अपने अधिकृत प्रदेशमें चला गया। पीलाजीभी दभाड़ेका साथी बना। सोनगढ़ से आगे बढ़ कर वह लूटता मारता आगे बढ़ने लगा । इसी अवसर में गुजरातके मुगल प्रबंधमें फेरफार हुआ। गुजरातका सूबा सरबुलन्दखां था । और इसका नायब निजामउलमुल्क था । बादशाहने निजामउलमुल्क के स्थान में सुजातखां को नायब बनाकर भेजा । परन्तु बादशाहकी आज्ञा प्रतिकूल. निजामउलमुल्क के चचा हमीदने बलवा किया । और शाहुके दूसरे सेनापति कन्थाजी कदम्बको दोहदसे सहायता के लिये बुलवाया तथा गुजरातकी
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