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[प्राक्कथन गुजरात वसुन्धराको परिचय कराया और सूरतको ६ दिनोंपर्यन्त खूबही लूटा। इसक पश्चात् विक्रम संवत् १७२६ में द्वितीय बार सूरतको लूटा । औरंगजेबके बाद मुगल साम्राज्यका सौभाग्य सूर्य अस्त होने लगा था। परन्तु उसके उत्तराधिकारी बहादुर शाहके समय तक किसी 'प्रकार मुगल साम्राज्यकी प्रतिष्ठा बनी रही। इस समय शिवाजीके पौत्र शाहुने पुनः महाराष्ट्र शक्तिका संगठन कर स्वातन्त्र्य ध्वजको ऊंचा किया । बहादुरके बाद उसका बड़ा पुत्र जहांदार बादशाह बना । जहांदारके बाद उसका भतीजा फर्रुखसियार बादशाह बना । फरुखसियार मरहठा तथा अन्य सरदारोंके षडयन्त्रका भोग बन मारा गया। और उन लोगोंने रफीउज्जात को बादशाह बनाया। जो ६ महीना बाद मरा और रफीउद्दौला बादशाह बना। रफीउद्दौलाके बाद मुहम्मदशाह बादशाह बना । इसके समयमें मुगल साम्राज्यका अंग भंग होने लगा। निज़ाम स्वतंत्र बन गया और मरहठोंने गुजरातमें अपना पांव जमाया । मरहठा सरदार खण्डेराव दभाड़
और दामाजीराव गायकवाडने सूरतको लूटा और १७७६ विक्रममें सोनगढ़को अपना केन्द्र बनाया । अनन्तर मरहठोंका जोर बढ़ने लगा । और उनका आतंक छा गया । पीलाजीराव गायकवाडके पुत्र दामजीरावने प्रायः समस्त गुजरात और काठियावाड़को हस्तगत किया । और मुगल साम्राज्यका गुजरातमें अन्त हुआ। यद्यपि इस समयसेभी और आगे पर्यंत मुगल राज्यका दीप टिमटिमाता रहा परन्तु हमारे इतिहासके साथ उसका सम्बन्ध न होनेसे हम इतनेहीसे अलम् करते हैं।
लाटमें मरहठे।
हम ऊपर बता चुके हैं कि लाट वसुन्धराको छत्रपति महाराजा शिवाजी ने सर्व प्रथम मुगल सम्राट औरंगजेबके राज्यकाल विक्रम संवत् १७२० में पदाक्रान्त कर प्रसिद्ध सूरत नगरको ६ दिवस पर्यन्त लूट, बहुतसा धन रत्न प्राप्त किया था। एवं इस घटनाके ६ वर्ष पश्चात् विक्रम १७२७. में पुनः सूरतकी विसूरत की थी। उक्त दोनों लूट पाट लाटसे मुगल साम्राज्यका पतन और मरहठा जातिके अभ्युदयका श्री गणेश था। अत : अब विचारना है कि मरहठा शौर्यका अभ्युदय किस प्रकार हुआ, और लाट देश उनके अधिकारमें क्यों कर आया। राजपूताना और मरहठा देशोंकी परंपरा शिवाजीका संबंध मेवाड़के शिशोदिया वंशके साथ मिलाती है। और
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