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.... [प्राक्कथन नहीं मिलता। किन्तु इतना तो निश्चय है कि अपरादित्यका प्रस्तुत १०६० वाला लेख अन्तिम काल का है । अपरादित्य के पश्चात् हरिपाल देव गद्दी पर बैन । इसका समय शक १०६० और १०७५ के मध्य है। हरिपालके तीन लेख शक १०७०-७१ और १०७५ के प्राप्त हैं। इन लेखोंसे कुछभी विशेष परिचय नहीं मिलता। हरिपालके पश्चात् मल्लिकार्जुन गद्दी पर बैठा । यह वास्तवमें शिल्हार वंशका राजा था इसके अधिकारमें शिल्हारोंके पूर्व अधिकार के होनेका परिचय पाया जाता है। क्योंकि इसके दो शासन पत्र शक १०७८ और १७८२ के प्राप्त हैं। उनमें एक चिपलुनसे और दूसरा वेसीनसे प्राप्त हुआ है। पाटन के इतिहाससे प्रकट होता है कि मल्लिकार्जुनके साथ पाटनके कुमारपालका युद्ध हुआ था।
और उक्त युद्ध में प्रथम मल्लिकार्जुनने पाटनके सेनापतिको पराभृत लिया था । परन्तु दूसरे युद्धमें मल्लिकार्जुनको हारना पड़ा।
मल्लिकार्जुन के बाद उसका पुत्र अपरादित्य गद्दी पर बैठा। अपरादित्यके दो शिलालेख शक ११०६ और ११०९ के प्राप्त हैं । अतः हम कह सकते हैं कि मल्लिकार्जुनका समय १०७८ से ११०६ पर्यन्त है अपरादित्य के बाद सोमेश्वर नामक शिल्हार राजाके राज्य करनेका परिचय मिलता है। क्योंकि उसके ११७१ और ११८२ के दो लेख हमें प्राप्त है। परन्तु इन लेखोंसे प्रकट नहीं होता कि उसका अपरादित्यके साथ क्या संबंध था। एवं सोमेश्वरके पश्चात् शिल्हाराओं का कुछभी परिचय नहीं मिलता । सोमेश्वर के पश्चात् शिल्हार वंश के परिचय संबंधों सेउण देश (देवगिरी) के यादवों के इतिहास के अध्ययनसे कुछ प्रकाश पड़ता है। हिमाद्रि पंडित कृत " यादव राज्यवंश प्रशस्ति” तथा विविध शासन पत्रों पर्यालोचनसे प्रकट होता है कि महादेव नामक राजा, शक ११८२ में यादव सिंहासन पर आया। उक्त प्रशस्तिके श्लोक ४८ से प्रकट होता है कि “यह तैलंगपति रूप रुईके समूहके लिये अग्नि-बहुत गर्जनेवाले और पर्वत समान गर्ववान गुर्जरपति के लिए वन और कोकण तथा लाटपतिको अनायासही पराभूत कर विडम्बनाका पात्र बनानेवाला था" | पुनश्च श्लोक ५० के उत्तर चरणवाले वाक्य " सोमः समुद्र प्लव पेषलोपि ममजसैनेः सः कुकुणेश" समुद्रको तैरनेमें प्रवीण सोम अपनी सेनाके साथ डूब गया। एवं अगला श्लोक प्रकट करता है कि " समुद्रने महादेवके क्रोधको वडवानलके समान मान कोकणपति सोमेश्वरकी रक्षा करनेके
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