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[प्राक्कथन अनायासही शासन पत्र कथित भूभागपर अधिकार कर लिया हो । दन्तिवर्मा और कर्क द्वितीयके लेखोंमें तीन वर्षका अंतर है । दतिवर्माका लेख उत्तरभावी और कर्कका पूर्व भावी है । अतः हम कह सकते हैं कि इसका सामंजस्य सम्मेलन असंभव नहीं है। इस सामंजस्य संम्मेलनार्थ हम कह सकते है कि वह विजय प्राप्त करनेके पश्चात् अपने अधिकृत राज्यका उपयोग नहीं कर सका । दंतिवर्माने आकर अनायासही उसके अधिकृत राज्यको हस्तगत कर लिया । चाहे हम कर्कको प्रथम विजयी मान लेवें और दंतिवर्माको उसे पराभूत करनेवाला मान लेवें परंतु हम यह कदापि नही मान सकते कि कर्कके पूर्वज शासन पत्र कथित भूभाग पर चिरकालसे अधिष्ठित और शासन करते थे क्योंकि शासन पत्रकी तिथि शक ६६९ से पूर्व कर्क प्रथमके लिये कमसे कम हमें ७५ वर्ष देने पडेंगे । इस प्रकार कर्क प्रथम का समय ६६९-७५-५६४ क
आसपास पहुंचता है । इस समय वातापि और नवसारीके चौलुक्योंका प्रताप सूर्य मध्य गगनमें प्रखर रूपसे प्रकाशित होरहा था । पुनश्च शासन पत्र कथित स्थानोंके आसपास नवसारीके चौलुक्यों के अधिकारका स्पष्ट परिचय विक्रम ७६६ पर्यन्त मिलता है। अतः यह निश्चित है की कर्क ने कही अन्यत्रसे आकर अधिकार किया था और अपनी विजयका उपलक्षमें उक्त दान दिया था।
___ परन्तु इस संभावना के प्रतिकूल कर्कका विरुद "समधिगत पंच महा शब्द" पड़ता है जिससे स्पष्ट है कि वह किसी का सामन्त था और उसे पंच महा शब्दका अधिकार अपने स्वामीसे प्राप्त हुआ था । अब विचारना है कि कर्कका स्वामी कौन हो सकता है। पूर्वमें हम दक्षिणापथ मान्यखेटके राष्ट्रकूटोंके इतिहासके पालोचन से प्रगट कर चु हैं कि दंतिवर्माने लाट प्रदेशको विजय किया था । केवल इतनाही नहीं इसकी माताने खेटकपुरके मातर विषयके प्रत्येक ग्रामकी कुछ भूमि दान दिया था। अब यदि हम दंतिवर्मा और कर्कके जातीय संबंधको दृष्टिकोणमें लावें और साथही नवीन अधिकृत भूभागपर स्वजातीय बंधुओंको शासक नियुक्त करनेके लाभालाभ पर राजनैतिक दृष्टि से विचार करें तो कह सकते है कि दंतिदुर्गने कर्कको नवीन अधिकृत भूभाग पर अपने अधिकारको स्थायी वनाने के विचारसे सामन्त बनाया था ।
अब प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या कर्क द्वितीय दंतिदुर्गका केवल स्वजातीय बंधु अथवा सम्बंधी था । दंतिदुर्गके इलोरावाले लेखमें उसकी वंशावली निम्न प्रकारसे दी गई है।
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