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कृष्णदेव भग
संसार में कष्ट देने वाला तथा दुष्कृत हुआ । १२ ॥
कारण अपने पिता को
वीरसिंह ने अपने ज्येष्ट पुत्र' मूलदेव की मृत्यसे दुःखी और शोक संतप्त हो मंत्रियो के मना करने पर भी छोटे पुत्र कृष्खदेव को राज्य से वहिस्कृत किया । १३ ॥
और मूलदेष के पुत्र कर्णदेव को राज्यों सिंहासन पर बैठा प्रजा को विलपती हुइ छोड़ कर जंगल में जाकर वानप्रस्थ आश्रम को ग्रहण किया । १४ ॥
कर्णदेव की महिणी चकुला देवी उपनाम "माधवी ने राम अर्जुन और भीच के समान पक्रम पुत्रों को प्रसव किया । १५ ॥
अब कवि ने अपनी इह लीला को समाप्त किया और विष्णु लोक में जाकर विष्णु सायुज्यता प्राप्त की तो सानो भाईश्री ने क्रमशः वसन्तपुर का राज्य शासन किया । ६० ।। इन तीनों भाइयों में व्येष्ठ सिद्धेश्वर, मध्यम त्रिशालदेव और कनिष्ठ धवलदेव उपनाम मीरदेव । १७ ॥
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घबलदेव उपनाम वीरदेव के पश्चात उसका परम धार्मिक पुत्र वासुदेव पर बैठी । पश्चात उसका पुत्र मीम समान पराक्रमी 'मीमदेव राजा हुआ। १८ ।। भीम ने अपने पिता के नामानुसार अम्बिका और कुलसैनी नामक नदियों के ब माणु वन के बीच विष्णु विप्रयुक्त सुन्दर और भव्य वासुदेव पुर नामक नगर बसाया । ११ ॥ भीम को अपनी हेमवती नामक राणी के गर्भ से चौलुक्य वंश रूपी धाराधि का अल्हा उपनाम रामदेव नामक पुत्र हुआ ॥ २० ॥
वीरदेव शौर्य में राम, धर्म में युधिष्ठिर, शत्रु नाश में कालान्तक यम और भातों में देने में भगवान शंकर के समान था २१ ॥
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arrant राणी सीता देवी पर पतिव्रता और संसार में इन्द्रकी ही रांची, विष्णुकी त्रमा और शंकर को स्त्री पार्वती की समता को प्राप्त करने वाली थी । २२ ॥
वीरदेव उपनाम रामदेवको अपनी राणी सीतादेवी के गर्भ से चार पुत्र हुए। उनमें विष्ठ वसन्त देव रामके समान ३३
लक्ष्मण के समान दूसरा महादेव, भरत के समान तीसरा कृष्णदेव और शत्रुन्न के समाने चाँया कीर्ति देव हुआ । २४ ॥
अपने इन चार पुत्रों से घिरा हुआ - प्रजा से पूजा और ब्रह्मर्णो से आदर प्राप्त कर राम इस संसार में जी स्वर्ग का सु-जालका २५॥
राम अपनी राज्धानी में प्रजाध्वरिजन और
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