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चौलुक्य चंद्रिका ]
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उक्त प्रदेश जयसिंहको क्योंकर और कब मिले यह प्रशस्तिसे कुछभी ज्ञात नहीं होता है । तृतीय भाग के विरुद जयसिंहको वनवासी युवराज कहा गया है। यह और भी उलझी हुई गुथ्वीको पूर्णरूपेण उलझाकर मतिभ्रम करता है । जयसिंहके वनवासी युवराज पद प्राप्त करनेका कारण प्रशस्तिने कुछभी नही बतलाया है । परन्तु यह साधारण बात है कि युवराजपद उसीको प्राप्त होता है जो किसी राजाका भावी उत्तराधिकारी होता है । परंतु शासन पत्रके उत्तरकालीन अंशसे प्रकट होता है कि जयसिंहको एक भाई था जो कहींका राजा था। अतः जयसिंह न तो अपने पिताका युवराज हो सकता है और न अपने भाईका । इस कारण उक्त युवराज पद हमारी पूर्ब धारणाके अनुसार हमे चक्र में डालने वाला है ।
शासन पत्रके द्वितीय से प्रकट होता है कि जयसिंह पर देवकोप हुआ था । और उसको अपने अधिकारसे वंचित होना पडा था । अधिकार वंचित होने पश्चात वह कालक्षेपणार्थ पाण्डवोंके समान जंगलमें चला गया था। कुछ दिनों पश्चात उसके पुत्र विजयसिंह - केसरी विक्रम पितृव्ययके सिमान्तर प्रदेशके कुछ भूभागपर अधिकार जमा बैठा। और अपने बाहुबल से मंगलपुरी नामक नवीन चौलुक्य राज्यका संस्थापक हुआ । प्रशस्ति स्पष्ट रूपसे वर्णन करती है कि उसने मंगलपुरीमें चौलुक्योंके वाराहध्वजको स्थापित किया था ।
शासन पत्रके तृतीय अंशसे प्रकट होता है कि विजयसिंह अपने साम्राज्य के विजयपुर नामक नगर में एक वार निवास करते समये संसारकी असारता को देख लक्ष्मीकी अस्थीरताका अनुभव कर धर्मकोहीं केवल परलोकमें अनन्य सहायक मान अपने मातपिता तथा अपने पुण्यकी वृद्धि का
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चौथे भागसे प्रकट होता है कि वनवासीसे आनेवाले अपने पुरोहितके पुत्र सोमशर्माको विजयपुर प्रान्त पार्बत्य विषयका वामनवली ग्राम दान दिया । एवं प्रजाको आदेश दिया कि वह उक्त सोमशर्माको ग्रामका दायभाग दिया करे ।
पांचवे भागमें प्रदत्त ग्राम बामनवली की चतुस्सीमा देनेके पश्चात स्ववंशज और पर वंशज भाओंसे आग्रह किया गया है कि वे उक्त धर्म दायका पालन करे ।
छठें भागमें धर्मदाय पालनका पुण्य और अपहरणका पाप आदि वर्णन करने हैं, पश्चात शासन पत्र बनाने वाले का नाम और शालन पत्रकी तिथि दी गई है। शासन पत्र की तिथि अक्षरों और को दोनोंमें दी गई है और सबसे अंत में शासन पत्रके दूतकका नाम लिखा गया है।
हमारी समझमें शासन पत्रमें किसी बातकी त्रुटि नहीं है । सब बातें इसमें जो शासन पत्र में होनी चाहिये दी गई हैं। इसमे प्रथम शासन कर्ताकी वंशावली उसका विशेष वर्णन द्वितीय दानका कारण दान प्रतिगृहिताका परिचय प्रदत्त ग्रामकी सीमा लेखक और दूतक आदिका परिचय सभी बातें दृष्टिगोचर होती हैं । अतः यह शासन पत्र त्रुटि रहित हैं।
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