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चौलुक्य चंद्रिका '
पश्चिम खाण्डव बन ।
उत्तर श्यामावली
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हमारे वंश के अथवा अन्य वंशके किसीको भी इसमें बाधा उपस्थित नहीं करना चाहिए बाधा करनेवाले को पांच प्रकारकी महा पातक होता है। उसी प्रकार पालन करने वाले के महा पुण्य ता है। कहा गया है।
६-- राजाओं का यह धर्म है कि चाहे अपने अथवा अन्य वंशजोंका यशवृद्धि करनेवाला धर्मकामना से दिया हुआ ही दान क्यों न हो। उसे नीर्माल्य मान उसकी रक्षा करे क्योंकि पूर्व इन्त दानका अपहरण साधु पुरुष नहीं करते - ऐसी याचना भावी नरेशों से हम करते हैं ।
इस संसार में वसुधाका भोग सगर आदी अनेक राजाओं ने किया है। परन्तु जिस समय वसुधा जिसके अधिकार मे रहती हैं उस समय पूर्वदत्त दानका पल रक्षा करनेके कारण सहीं होता हैं ।
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वालमानव्य कायस्थ कृष्णदत्त के पुत्र हरि दत्त ने इस शासन पत्रको कविता को किया और लिखा विक्रम संवत १९४६ माघ कृष्ण द्वादशी। इस शासनका दूतक नरदेवका पुत्र हरदेव महासन्धि विग्रहीं हैं ।
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