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चौलुक्य चंद्रिका ]
पुनश्च इनके अभ्युदय काल विक्रम ६३७ और चौलुक्यराज़ पुलकेशी द्वितीय के पूर्व कभित लेख में सवाल.५४ वर्षका अन्तर है। इस थोड़े समयकी अवधिमें न तो किसी विजेता जाति के नामानुसार किसी देशका नाम परिवर्तीत होकर सर्व साधारणमें उसका प्रचार हो सकता है और न वह जाति सर्व साधारण जनताकी दृष्टिमें प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकती है। इसके अतिरिक्त पुलकेशी के लेखमें गुर्जर नाम के साथही लाटका प्रयोग किया गया है। भरुचके गुर्जरोंका लाट देशमें होना निर्धान्त है। लाटके साथ गुर्जर शब्दका प्रयोग प्रकट करता है कि मरुधवाले गुर्जरों के अतिरिक्त किसी अन्य स्थानपर गुर्जरोंका अधिकार था। और उक्त प्रदेश गुर्जर कहलाता था। क्योंकि लाट प्रदेशमें सामन्त रूप से राज्य करनेवाले नंदिपुरके गुर्जयेका उल्लेख लाट नामके साथ हो जाता है ।
भीनमाल के गुर्जरों का अभ्युदय ।
अब देखना है कि नंदिपुर के गुर्जरों के पूर्व अथवा समकालीन किसी अन्य गुर्जर राज्यका अस्तित्व पाया जाता है अथवा नहीं। चिनी यात्री हुनसेन के भारत भ्रमण वृतान्त पर दृष्टिपात करने से प्रकट होता है कि वर्तमान मारवाड़ राज्यके भीनमाल नामक स्थानमें एक अन्य मुर्व राज्यमा । उसका अधिकार बहुत बड़े भूभागपर था। उसके राज्यकी परिधि ६३३ वर्ग मील भी। हुआवसेनका भारत भ्रमण विक्रम संवत ६८७ के बाद प्रारंभ हुआ था। भता अविचारता है, कि भीनमालके गुर्जर राज्यका अभ्युदय काल क्या है।
- जिस प्रकार भीनमालके गुर्जरोंका अभ्युदयकाल निश्चित रूपसे ज्ञात नही है उसी प्रकार उनके अन्दका समय भी अज्ञात है। तथापि उनका अन्त समय एक प्रकार से निश्चित रूपसे प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि गुर्जरों के बाद भीनमाल पर चांपोत्कटों ( चावडो) का अधिकार पाया जाता है। भीनमाल के चावडोका स्पष्ट रूपसे उल्लेख लाट देशके चौलुक्य राम पुलकेशी (जयकुदा) संवत्सर: ४६२ तदनुसार विक्रम संवत ७६६ वाले लेखमें हैं । उधर विक्रम संवत के आसपास भीनमालके गुर्जर राज्यको पूर्ण रूपेण विकसित पाते हैं। अतःमर सकते हैं कि भीनमालका गुर्जरोंका अन्त विक्रम संवत ६८७ और ७९६ के मध्य विक्रम संवत १४० और.७५०. के मध्य है।
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