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चौलुक्य चंडिका ]
बिल्हण कवि कृत “ विक्रमांक देव चरित्र " के पर्यालोचनसे प्रकट होता है। कि आह मल्ल को राज्य पाने पश्चात बहुत दिनों पर्यन्त कोई पुत्र नहीं हुआ था । परन्तु बिल्हण ही दुसरे स्थलके कथनसे प्रकट होता है कि हवमल्ल के सोमेश्वर विक्रम और जयसिंह तीन पुत्र उसके स्वर्गवास समय शक ९६० मे पूर्ण वयस्क थे । आहवमल्लका राज्यकाल ६६२ से ६६० पर्यन्त २६ वर्ष है । अब यदि हम बिल्हण का पूर्व कथन " आहवमल्लको राज्य पाने पश्चात बहुत दिनों पर्यन्त कोई पुत्र नहीं हुआ था " मान लेवे तो वैसी दशा में उसकी मृत्यु समय सोमेश्वर आदि को अल्प वयस्क बालक होना चाहिये । परन्तु इसके विपरीत शक १९१ से लगभग २३ वर्ष पूर्व शक ६६८ मे विक्रमादित्यका अपने पिता के साथ युध्ध में जाना और चोल पति राजाधिराज प्रथम के साथ लडना पाया जाता है। इस युध्धका राज्याधिराज के राज वर्ष के २९ वें वाले अर्थात शक ६६८ के लेखमें वर्णन है । एवं चोल के राजा वीर राजेन्द्र के राज्य काल के चोथे वर्ष अर्थात शक ६८८ के लेखमें उसके कुण्डल संगम नामक स्थान पर आथवमल के साथ लडने का वर्णन है । उक्त युध्ध में हमल के दो पुत्र विक्की [विक्रमादित्य ] और सिंगन [जयसिंह ] सामिल थे ।
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विक्रमादित्य की प्रथम युध्ध यात्रा शक ६६८ और द्वितीय युध्ध यात्रा शक ६८८ में २० वर्षका अंतर है । अब यदि हम प्रथम युद्ध यात्रा के समय विक्रमकी आयु १५ वर्षकी भी मान लेवें तो उसका जन्म अपने पिता के राज्य प्राप्त करने के ८ वर्ष पूर्व अर्थात शक १५३ से पूर्व सिद्ध होता है । अतः यदि हम विक्रम और उसके बडे भाई सोमेश्वर के जन्म कालका अंतर वर्षभी मान लेवे तो आहवमल के बडे पुत्रका जन्म शक ६५१ में ठहरता है । परन्तु जयसिंह अपने पिता का तीसरा पुत्र और विक्रम से कनिष्ट था । अब यदि हम इन दोनों के जन्मका अन्तर दो वर्ष भी माने तो इसका जन्म शक ६५५-५६ में ठहरता है । अथवा संभव है कि जयसिंहका जन्म शक ६५५-५६ से कुछ पूर्व हुआ हो । क्यों कि आहवमल्ल को कई रानिया थी । ऐसी दशा में सोमेश्वर, विक्रम और जयसिंह का जन्मकाल अंतर दो वर्ष को कौन बतावे । उससे बहुत कम अर्थात केवल महिना, दिनों या घडी पल का हो सकता है। इन तीनो भाईओं का एक माता से जन्म नहीं हुआ था। यह ध्रुव सिध्धांत है। और इनके जन्मकाल का निश्चित ज्ञान न होने से इनकी आयु पिता के रज्यरोहन समय क्या थी कहना कठिन है । परन्तु इनका जन्म पिता के राज्यारोहन के समय से बहुत पहले हो चुका था इन प्रमाणो के सामने बिल्हण कवि का कथन भावुक और निरंकुश कवियों के कथन के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । इसके अतिरिक्त बिल्हण के कथनकी उपेक्षा करानेवाली उसके कथनमें अनेक प्रकारकी निराधार बातों की संप्राप्ती है
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हां बिल्हणके " जयसिंहका शक ६६८ के युध्धमें सामिल न होना ” प्रकट करनेवाले कथनमें कुछ सत्यांशको स्वीकार करने के लिये मनोवृत्तिका झुकाव होता है । और हम थोडी देरके लिये उसमें कुच सत्यांश मान लेवे तो भी कहना पड़ेगा कि उसका जन्म ६६६ के पूर्वही
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