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चौलुक्य चंद्रिका]
ब्रह्मावर्त प्रदेशान्तर्गत पंचाल जनपदके काम्पिल्य नगरसे आनेवाले, वेदवेदान्तादि सकल शत शास्त्रोंमें प्रवीण, सम दम उपरति तितिक्षादि साधन चतुष्टय संपन्न, जप तप स्वाध्याय अग्निहोत्र निरत गौतम गोश संभूत पंच परवर काण्वशाखाध्ययि ब्रह्मदेव शर्माकी प्रेरणासे जगदगुरू भवानीपति शकरकी अभ्यर्चनाकर संसारकी असारता देख शुक्लतीर्थमें अपने पितामह द्वारा संस्थापित क्षेत्र के मध्य पिताद्वारा संचालित पाठशालामें अध्ययन करनेवाले ५० विद्यार्थिओं के भोजनादि निर्वाहके निमित्त नंदिपुर विषयके हरिपुर नामक ग्राम को सीमादि तथा सर्व प्रकारकी आयके साथ दान दिया। दानकी रक्षा का फल सामान रूपसे मान हमारे वंशजो तथा दूसरे होनेवाले भावी राजाओंको उचित है कि इसका पालन करे। कहा गया है।
सगरादि बहुतसे राजाओंने इस वसुधाका उपभोग किया है परन्तु वसुधा जिस सयय जिसके अधिकारमें रहती है उस समय उसकोही पूर्वदत्त भूदानका फल मिलता है।
भूमिदान देनेवाला साठ हजार वर्ष पर्यन्त स्वर्गमें सुख भोग और अपहरण करने तथा अपहरणकी अनुमति देनेवाला उतनीही अवधि पर्यन्त नरकमें दुःख भोगता है।
___इस शासन पत्र का दूतक महा दण्डाधिपति भीमराज, लेखक भूदेव और ताम्र पटों पर लिखने वाला सुवर्णकार बज्जल का बेटा अल्लट है। यह हस्ताक्षर श्री त्रिविक्रमपालका है। इति ।।
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