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[ लाट नन्दिपुर खण्ड,
लाटपति चौलुक्यराज त्रिविक्रमपाल
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शासन पत्र
९ ॥ ॐ स्वति जयोऽभ्युदयश्च ॥ भगवते चंद्र चूड गंगाधर शिति कण्ठ भुजङ्गगमाली व्याघ्राम्बर धारी त्रिशूलपाणये नमः॥ स्वति संवत्सरशतेषु नवसु नवति नवाधिकंषु शक कालातीतेषु श्रावण शिते षष्ठ्यां यथा तिथि पक्ष मास संवत्सरेषु समस्त राजावली समलङ्कृत मधेह नान्दिपुरे श्री मन्निम्बार्क कुल कमल दिवाकर देव सेनानी समतोपलब्धानिपति श्री वारपदेव स्नरपदापुध्यात सारस्वातीय पाटन महोदधि मन्थन मन्दर मेरु कर कृपाण बलाप्त वसुधाधिपत्यं श्रीमन्महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक श्री गोर्गिर/ज देव स्तत्पादानुध्यात श्रीमन्महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक कीर्तिचंद्रदेव स्तत्पादानुध्यात् श्रीमन्महाराज परमेश्वर परम भट्टारक वत्सराजदेव स्तनपादानुध्यात श्रीमन्महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक त्रिभुवनपाल देवात्मजः कर्ण कुमुदाङकुर तुषारोऽपि चौलुक्याब्धि विवर्धनेन्दु श्रीमन्महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक त्रिविक्रमपालदेवः समस्त राज पुरुष ब्राह्मणेतरा जनपदांश्च प्रतिबोधयत्यस्तु सुविदितमवः नूतन जलद पट सम पाटाम्बराच्छादिते वसुधरे स्वपितृव्य श्रीमन्महाराज जगत्पाल भुजाघात संचारित वायु विताडित शत्रु मेघान्धकार विनिर्मुक्ते नागसारिका मण्डले स्त्रभुज बलार्णवे वाट पद्रक विषये वैश्वामित्री तटे दानवानी निमज्जिते ब्राह्मणेभ्यः स्वास्तिक मंत्रोच्चारेण समाहते पुरजनै हर्षातिरेक मर्यादा विस्मृत सावृते वल्लभीस्थिता पुरवधू प्रेक्षित पुष्पधारा निमज्जिते परिपूर्ण जल पल्लवाच्छुदिते कनक कुम्भ सिर स्थापितो दाहार्या छत कोकिल रव मंगल गान शब्दाश्रव पूर्ण कर्णकूटरे मेरी शंख मृदंग ताल भंकर रवपूर्ण दिगन्तले चैतादृशे परिवृते जनन्या लचिते रेवायां
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