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प्राक्कथन ।
किसी भी जाति और देशके पुरावृत्त का विवेचन करने के पूर्व यह परम आवश्यक. है कि उस जाति के वंश - वंशसंस्थापक और अभ्युदय आदि तथा उसके पूर्वजों की जन्मभूमि और वर्तमान देशके साथ संबंध प्रभृति एवं उस देशके नाम करण और उस देशके पुराकालीम राजाओं तथा उसके मानचित्र और सीमा प्रभृतिका सांगोपांग विचार कर लिया जाय। अत एवं दक्षिण गुजरात अर्थात् लाट प्रदेशके चौलुक्यों के पुरावृत विवेचन में प्रवेश करनेके पूर्व हम दक्षिण गुजरात अर्थात् लाट प्रदेश के नाम करण और पूर्ववर्ती राजवंशादि का प्रथम विचार करते हैं ।
गुर्जर और लाट ।
भारतीय पुराण - रामायण तथा महाभारत आदि किसीभी एतिहांसिक प्रथमे गुजरात और प्रदेशका नाम नहीं पाया जाता । प्रत्युत जिस भूभागको संप्रति : गुजरात (पशि और उत्तर ) लाट कहतें हैं उसको आनर्त और परान्त नामसे अभिहित पाते हैं। महाभारतकालीन आर्त और परान्त प्रदेशको भिन्न करनेवाली नर्मदा थी और अपरान्तको विलग करनेवाली कावेरी थी। इससे प्रकट होता है कि सम्प्रति जिस भूभागको दक्षिण गुजरात या लाट कहते हैं यह उस समय परान्त नामसे अभिहित था ।
महाभारतके पश्चात् मौर्य साम्राज्य की स्थापना कुछ पूर्व अर्थात् यूनानी वीर मसुन्दर के आक्रमण कालसे भारतीय इतिहासकी ज्ञात अवधिका प्रारंभ होता है। यदि " माय कि ज्ञात एतिहासिक कालके प्रारंभ में मौर्यवंशका साम्राज्यसूर्य' वास्तवमे भारत चक्रवतीत्य सौभाग्यको प्राप्त था तो अत्युक्ति न होगी। क्योंकि इसके अधिकारमें पौराणिक भरतखंडकी ओर
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