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चौलुक्य चंद्रिका ]
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व्यक्तियों का सम्बन्ध स्पष्ट रुपेण वर्णीत है। पुलकेशी द्वितीयके शासन पत्र मे उसे पुलकेशी प्रथम का पौत्र और कीर्तिवम्मी का पुत्र कहा गया है । उसी प्रकार विक्रमादित्य के शासन पत्र मे उसे पुलकेशीं प्रथमका प्रपौत्र, कीर्तिवर्म्मा का पौत्र एवं पुलकेशी द्वितीय का प्रिय तनय बताया गया है । साथ हीं विक्रमादित्य को चित्रकंठ घोडे पर आरुढ होने वाला वर्णन किया गया है ।
आलोच्य शासन पत्र को घराश्रय जयसिह के भाई के पास चित्र कंठ घोडा का होना स्वीकार है। उधर धराश्रय जयसिंह के अन्य पुत्र युवराज शिलादित्य के पूर्व प्रकाशित शासन पत्र मे धराश्रय जयसिंह को स्पष्ट रुपेण विक्रमादित्य का भ्राता और पुलकेशी का पुत्र बताया है । ऐशी दशा मे हम निश्शंकोच हो आलोच्य शासन पत्र की वंशावली को दोषपूर्ण बताते है । आलोच्य लेख को, हम उपर बता चुके है; वंशावली गत दोष अन्यान्य दोषो के साथ मिल कर शंका महोदधि के महान भवर डाल देता है । अब विचारना है कि प्रस्तुत शासन पत्र में इस प्रकार की त्रुटियां क्यो पाई जाती है।
यद्यपि लेख कथित त्रुटियों के कारण शंका महोदधि के महान भवंर में पडा है । इसकी यथार्थता संदिग्धता को प्राप्त है । तथापि हमारी समझ मे लेख मे कितनी ऐसी साम्यता आदि पाई जाती हैं जिनको दृष्टि कोण मे लाते हीं लेख शंका महोदधि को अपने आप उत्तीर्ण कर जाता है । हमारी समझ सम्यतादि का दिग्दर्शन कराने के पूर्व इसकी तिथि आदि त्रुटियों का विचार करना हीं उत्तम प्रतीत होता है | अतः हम लेख का समय विवेचन सर्व प्रथम हस्तगत करते हैं।
लेखमें दान दाताको घराश्रय जयसिंहका पुत्र और राजा नामसे अभिहित किया गया है । अतः यह स्वतः सिद्ध है कि प्रस्तुत लेख दान दाता के राजा होने पश्चात लिखा गया है । साथहीं यही भी मानी हुई बात है कि दाता अपने पिता की जीविता अवस्था मे राजा नामसे कदापि अभिहित नहीं हो सकता । इस हेतु लेख दाता के पिता की मृत्यु पश्चात लिखा गया है। पूर्व मे युवराज शिलादित्य के शासन पत्रका विवेचन करते समय सिद्ध कर चुके है। कि धराश्रय जयसिंह शक ६१८ के आसपास पर्यन्त जीवित था । अतः यह लेख अवश्य शक ६१८ के बाद लिखा गया होगा। क्योकि धराश्रय जयसिंह की मुत्यु होने के लक्षण दिखते है । जयसिंह का उत्तराधिकार उसका दूसरा पुत्र मंगलराज हुआ था । एवं मंलराजकी समकालिता जयसिंह के पौत्र और बुद्धवर्मा के पुत्र विजयराज को राजा रूपमें शासन पत्र प्रचलित करते पाते है। संभवतः जयसिंह ने अपनी मृत्यु समय मंगलराज को उत्तराधिकारी और अन्य पुत्रों बुद्धवमी, नागवर्धन और पुलकेशी आदि को जांगीर प्रदान किया हो और वे अपने अधिकृत स्थानों पर राजा रुपसे शासन करते हों । यदि ऐसी बात न होती तो बुद्धवमाका पुत्र विजय राज अथवा नागवर्धनको इस प्रकार शासन पत्र शासित करते न पाते ।
आलोच्य शासन पत्र की तीथि संबन्धी दोष का आनुमनिक रुपेण समाधान करने पश्चात हम लेख की वंशावली गत दोष के परिहार मे प्रवृत होते है । प्रस्तुत लेख की लिपी गुर्जर
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