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छायानुवाद |
कल्याण हो । बाराह रूप भगवान विष्णुकी, जिन्होंने समुद्रमंथन किया और अपने ऊपर उठे हुए दक्षिणदन्त के अग्र भागपर वसुन्धराको आश्रय दिया, जय हो । समस्त संसारमें प्रशंसा प्राप्त मानव्य गोत्र संभूत हारिती पुत्र, जो सात माताओंके समान सप्त मातृकाओं द्वारा परिवर्धित, भगवान कार्तिकेय द्वारा संरक्षित, भगवान नारायण के प्रसाद से सुवर्ण बाराहध्वज संप्राप्त—जिसके देखने मात्र से शत्रु वशीभूत होते हैं- -उस चौलुक्य वंशका अलंकार - जिसका शरीर अश्वमेधावभृत्थ स्नान से पवित्र हुआ है और जो सत्य का आश्रय है- श्रीमान कीर्तिवर्माका पुत्र — जिसने अनेक राजाओं के मुकुटों को अपने पग तलमें किया है, जो मेरु और मन्दर के समान धैर्यशाली तथा नित्य वृद्धिमान है, जिसकी सेनामें गजारोही, अश्वारोही रथी और पदाति हैं, एवं जिसने वायु समान वेगवान चित्रकंठ नामक अश्वपर आरूढ़ हो अपने शत्रुओं का मर्दन कर स्वराज्य के अपहृत भूभागको, स्वाधीन किया है, एवम् चेर, चोल और पांडय राज्यत्रयको पद दलित किया है और अन्ततोगत्वा उत्तरापथ के स्वामी श्री हर्षको पराभूत कर नवीन विरुद धारण किया है— श्री नागवर्धन का पादानुध्यात परम माहेश्वर श्री पुलकेशी वल्लभ है। उसका छोटा भाई राजा श्री जयसिंह वर्मा जिसने अपने भाई के शत्रुओं के समस्त मित्र राजाओं की संमिलित सेनाको पराभूत किया । और धराका आश्रय बन धाराश्रय विरुद ग्रहण किया । उसका पुत्र त्रिभुवनाश्रय राजा नागवर्धन समस्त वर्तमान और भावी राजाओं को ज्ञापन करता है कि हमने गोप राष्ट्र विषयका बलेग्राम नामक ग्राम समस्त भोग भाग हिरण्यादि सपरिकर सहित – आचार्य भट्ट की प्रेरणासे - यावत् चन्द्र सूर्य तथा समुद्र और भूमि की स्थिति पर्यन्त-भगवान कपालेश्वर के पूजनार्चन निर्वाहार्थ तथा कपालेश्वर के महाव्रतियों के उपभोगार्थ — अपने माता पिता तथा आत्म पुण्य और यश की वृद्धि अर्थ जलद्वारा संकल्पपूर्वक प्रदान किया है। हमारे वंशके तथा अन्य वंशके भावी राजाओंको उचित है कि लौकिक एैश्वरको नश्वर मान हमारे इस दान धर्मका पालन करें क्योंकि भगवान व्यासने कहा है— सगरादि अनेक राजाओं ने इस वसुन्धराका भोग किया है, परन्तु वसुधा जिसके अधिकारमें जिस समय रहती है— उसको ही भूमिदानका फल मिलता है । जो मनुष्य अपनी दी हुई अथवा दूसरे की दी हुई भूमिका अपहरण करता है वह साठ हजार वर्ष पर्यन्त विष्ठामें कृमि बनकर वास करता है।
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[ लाट नवसारिका खण्ड
- LAZKAO
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