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चौलुक्य चंद्रिका ]
प्रस्तुत ताम्र पटोत्कीर्ण लेख आज १०७ वर्ष पूर्व सन १८२७ में उत्तर गुजरात के खेटकपुर मण्डल (खेड़ा) के समीप बहने बाली वत्रुच्चा नदी के कटाव से तट भागकी भूमि कट जाने से मिला था। इन पत्रों का प्रकाशन अध्यापक डासन ने रायल एसि - चाटिक सोसायटी के पत्र भाग १ पृष्ट २४७ में किया था। वर्तमान समय यह शासन पत्र उक्त सोसायटी के बोम्बे विभाग के अधिकारमें है ।
इन पत्रों का आकार प्रकार लगभग १३५/८ + ८ ७/८ इल है। प्रथम पत्रक की लेख पंक्तियाँ २१ तथा द्वितीय पत्रक की १३ हैं । इस प्रकार दोनों पत्रोंकी कुल लेख पंक्तियाँ ३४ हैं । एक प्रकार से पत्रों की आयन्त भावी पंक्तियाँ सुरक्षित हैं । परन्तु द्वितीय पत्रक के लेखकी पंक्तियाँ २८, २९, ३०, ३१, और ३२ प्रायः नष्ट हो गई हैं।
यह लेख विजयराज नामक चौलुक्य राजा का शासन पत्र है। इसकी तिथि वैशाख शुद्ध १५ संवत ३६४ है । इसके द्वारा विजयराज ने जम्बुसर नामक ग्राम निवासी ब्राह्मणों को उनके बलि वैश्य देवाग्नि होत्रादि नित्य नैमित्तिक कर्म संपादनार्थ भूमिदान दिया है। पुनश्च दान का उद्देश्य अपने माता पिता और स्वात्म्य के पुण्य और यश की वृद्धि की कामना है । लेखकी भाषा संकृत और लिपि केनाडी है । यह शासन पत्र उस समय लिखा गया था जब शासन कर्ता विजय राज का निवास विजयपुर नामक स्थान में था। विजयराजकी वंशावली का प्रारंभ जयसिंह से किया गया है। और उस पर्यन्त वंशावली में केवल तीन नाम दिये गये हैं । और प्रत्येक का संबंध स्पष्ट रूपेण वर्णन किया गया है। पुनश्च बिजयराज के वंशका परिचय चौलुक्य इतना सब कुछ होते हुए भी शासन पत्र में घोर त्रुटियाँ पाई जाती हैं क्यों कि इसमें यह नहीं बताया गया है की जयसिंह कहां का राजा और उसके बाप तथा दादा कौन थे । एवं जयसिंह की राज्यधानी कहां थी। अंततोगत्वा विजयसिंह का बाप बुद्धवर्मा तथा स्वयं विजयसिंह कहां रहता था । इसके अतिरिक्त शासन पत्रका संघत कौन संवत था यहमी नहीं पाया जाता। सबसे बढ़कर शासन पत्रकी त्रुटि प्रदशनाम " पर्याय " की सीमाओं के उल्लेखका न होना है। अतः यह शासन पत्र और इसमें कथित
नामसे दिया गया है।
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