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जनाश्रय श्री पुलकेशी
का
शासन पत्र |
द्वितीय पत्रक |
[ लाट नवसारिका खण्ड
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२६ तुरंग खर मुखर खुरोत्वात घरिणि धूल धूसरित दिगंतरे कुं प्रांत नितांत विमर्द्यमान रभसः भि धावितो
२७ भट स्थलोदार विवर विनिर्गतांत्र पृथुतर रुधिराराज कवच भीषण वपुषे स्वामि महा
२८ सन्मानदानराजा ग्रहण ऋयोपकृत स्वशिरोभिरभिमुखमापतितैः प्रपद प्रदर्शनाग्रदंष्ट्रोष्ठपुटकैरने
२६ क समराजिर विवर वरिकरि कटि तट हय विघटन विशालित घन रुधिर पटल पाटलित पट कृपाण पटैरपि महा
३० यो वैर लब्ध परभागः विपक्ष क्षपण क्षेत्र चित्र क्षिप्रतीक्षण तुर प्रहार विलून वैरि शिरं कमलगलनाले रा
३१ ह वर सरभ सरोमाञ्च कंचुकाच्छादित तनुभिरनेकचैरि नरेन्द्र वृन्द वृन्दारकै र जितपूर्वैः व्यपगत स्माक
३२ मण मनेन स्वामिनः स्वशिरः प्रदानेना व्यातावदेक जन्मीयमित्यमीयविजात परितोषानन्तर प्रहत पटु प
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३३ टहर प्रवृत्त कबन्ध बद्ध रास मण्डलीकेः समर शिरसि विजिता जिकान के शौर्यानुरगिणा श्रविदत्रमनरे
१४ न्द्रेण प्रसादी कृता परनाम चतुष्टय स्तद्यथा दक्षिण पथ साधारण चलकी कुलालंकार पृथिवी व श्रमानिवर्त्तकानि
३५ वर्त्तयित्रावनिजनाश्रय श्री पुलकेशी राजस्सर्वाण्येवात्मीयान् १६ समनु दर्शयत्यस्तुवः संविदितं यथा स्माभिर्मातापि
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