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लाट नबसारिका खण्ड था । जब वह स्वयं गद्दी पर नहीं बैठा था तो वह क्योंकर अपने छोटे भाई धराश्रय जयसिंह वर्माको लाट प्रदेशका राज्य दे सकता है । जब शिलादित्य के पिताको शाके ५५६ में स्वयं ही राज्य नहीं मिला था तो वैसी दशा में उसका पुत्र शिलादित्य युवराज क्योंकर माना जा सकता है। यदि कहा जाय कि मंगलराज के शासनपत्र की तिथि अनर्गल है। तो हमारा विनम्र निवेदन यह होगा कि उक्त तिथि ठीक है क्योंकि उसके साथ वातापिके चौलुक्य राजवंशी तिथिका क्रम मिलजाता है। अतएव हम उसे अशुद्ध नहीं मान सकते।
इन विपत्तियों से त्राण पानेके लिये पण्डित भगवानलाल इन्द्रजीने निम्न संभावनाओंका अनुमान किया है ।
१ - चौलुक्यवंश में शिलादित्य नाम नहीं पाया जाता । श्रतएव या तो यह ताम्रपत्र वल्लभी के राजा शिलादित्यका है अथवा जाली है ।
२- यदि वल्लभी के राजा शिलादित्य का यह लेख नहीं है तो वैसी दशा में यह अवश्य जाली है। क्यों कि इसकी तिथि का मेल वातापि के राज्यवंशकी तिथि से नहीं मिलता ।
इसके संबंध में हमारा निवेदन यह है कि इस शासन का कर्ता वल्लभी का शिलादित्य नहीं है क्यों कि इसकी शैली का 'वल्लभी वालों के लेखों की शैली से मेल नहीं खाता । पुनश्च यह लेख जाली इस कारण से नहीं है कि इसमें सूक्ष्मतर विवरण पाये जाते हैं । एवं इसकी शैली का वातापि के चौलुक्यों के लेखसे पूर्ण सामंजस्य पाया जाता है । पुनश्च इस लेख के अतिरिक्त शिलादित्य का एक और लेख सूरत से प्राप्त हुआ है । उसके पर्यालोचन से प्रगट होता है कि उक्न लेख के लिखे जाने के समय भी धराश्रय जयसिंह लाट के चौलुक्य राज्य सिंहासन पर सुशोभित था और राजकार्य में उसका हाथ युवराज शिलादित्य बटाता था । अपरंच नवसारी से प्राप्त अन्य दो लेखों में संवत ४२१-४४३-४९० मिला है। ऐसी दशा में इस संवतका परिचय प्राप्त करना आवश्यक है।
कथित संवत ४२१ को हम विक्रम संवत से भिन्न सिद्ध कर चुके हैं। अतः अन विचारना है कि यह कौनसा संक्त है । मगध के गुप्तों का राज्य वर्तमान गुजरात और
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