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चामुंडा देवी मंदीर में ठहरनेका बतलाया, तब महाराज तो दे' की आज्ञालेकर वहांही ठहरे. उनके संयमानुष्ठान, जप, तप, ध्यान, धैर्य, ज्ञानादिगुण देखकर देवीभी प्रश्न होकर जीवहिंसा छोडकर, जीवदया पालनेवाली व महाराजकी भक्ति करनेवाली होगई. और शहर वालेभी पुण्यवान भव्यजीव जिनाशानुसार सत्यधर्मकी परीक्षा कर नेको वहां महाराज के पास थोडे २ आने लगे. और अन्य दर्शनियों में भी महाराज के विद्वत्ताकी बडी भारी प्रसिद्धि होनेसे बहुत लोग अपना संशय निवारण करनेकेलिये महाराजकेपास आनेलगे, शहरभर में बहुत प्रसंशा होने लगी, तब कितनेक गुणग्राही श्रावक लोग भी महाराजको गीतार्थ, शुद्धसंयमी और शास्त्रानुसार विधिमार्ग की सत्यबाबतलानेवाले जानकर, चैत्यवासियोंकी शास्त्राविरुद्ध प्ररूपणाकी तथा चैत्यकी पैदास से अपनी आजीविका चलाने की स्वार्थीकल्पितबातोंको छोडकर महाराजकेपास शास्त्रानुसार सत्यबातें कों ग्रहण करने वाले होगये, पीछे महाराजका चौमासाभी वहां करवाया. तब तो महाराज चैत्यवासियों की शिथिलता और अविधिको खूब जोरशोरसे निषेध करने लगे और जिनाशानुसार विधिमार्गकी सत्यबाते विशेषरूपसे प्रकाशित करनेलगे, उसको देखकर बहुत भव्यजीव चेत्यवासियोंकी मायाजालसे छुटकर शास्त्रानुसार क्रिया अनुष्ठान करने लगे । तबतो चैत्यवासी लोग महाराजपर बहुत नाराज होगये और अपनी शास्त्रविरुद्ध भूलों को सुधारनेके वदले पांचसौ चैत्य वासी इकट्ठे होकर लकडीयें वगैरह हाथमें लेकर महाराजको मारकेलिये आये, इसबात की अच्छे २ आगेवान श्रावकोंद्वारा चितोड नगर के राजाको मालूम पडनेसे महाराज ऊपरका यह उपसर्ग रा. जाने दूर किया, चैत्यवासीलोग बहुत द्वेष करते थे और नगरभर के सबमंदिर चैत्यवासियोंके ताबेमैथे. इस अवसर में महाराज श्रावकों के साथ श्रीमहावीर स्वामीके दूसरच्यवन कल्याणक संबंधी आसोज वदी १३ को चैत्यवासियोंके मंदिर में देववंदनादि करने को जाने लगे, तब पहिलेके विरोधभाव के कारणसे राज्यमान आगवान् श्रावकलाग साथमेंथे इसलिये चैत्यवासीलोग तो कुछबोल सके नही, मगर एक चैत्यवासीनी बुढिया अपने तुच्छ स्वभाव से अपनेगच्छ के आश्रित मंदिरके दरवाजेपर आडी सोगई और क्रोध से बोलने लगी कि-' पहिले ऐसा कभी हुआ नहीं और यह अभी करते हैं सो मेरे जीवते तो मंदिर मैनहीं जाने दूंगी; मैरे को मारकर पीछेभले अंदर जावो'
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