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दामुजब तीर्थकरमहाराजोंकी माताओंकेगर्भमै तीर्थकर उत्पन्न होने की सूचना करने वाले १४ महास्वप्न देखनेकी तरहही त्रिशलामातानेभी१४महास्वप्न आकाशसे उतरते हुएदेखे ,इसलिये यहतो दूसरा च्यवनरूप कल्याणकपना प्रत्यक्षमेही सिद्ध है । उन्हीको नीचगौत्रका विपाकरूप और आश्चर्यरूप कहकर कल्याणकपनेका निषेध किया सो यहभी एकोणवीशवीभी बडी भूलकी है।
२०- जैसे देवलोकसे देवभवसंबंधी आयु पूर्ण होने पर वहांसे च्यवनरूप कारण होनेसे माताकेगर्भ में उत्पन्न होनेरूप (अवतार लेने रूप) कल्याणकपनेका कार्य होता है, तो भी कारण कार्य भावसे च्यवनकोही कल्याणकपना कहनेमे आता है । तैसेही गर्भापहाररूप कारणहोनेसे तीर्थकर पनेमें प्रकट होनेकेलिये गर्भसंक्रमणरूप (अध. तारलेनेरूप) दूसराच्यवनरूप कल्याणकपनका कार्य हुआ है, तोभी कारण कार्यभावसे गर्भापहारको कल्याणकपना कहने में आताहै । इसलिये उनको गर्भपहार कहो ; गर्भसंक्रमण कहो, त्रिशलाकुक्षिमें अवतार लेनेका कहो,या दूसराच्यवनरूप कल्याणक कहो. सबका तात्पर्यार्थसे भावार्थ एकही है, इनमे किसी तरहका विरोध नहीं है. इसप्रकार तीर्थकरपनेमें प्रकट होनेके लिये त्रिशलाके गर्भमें अवतार लेनेरूप गर्भापहारके उत्तम कार्यके भावार्थको समझे बिनाही ग.
र्भापहारको अतिनिंदनीक कहते हैं सो तीर्थकर भगवान के अवर्णवाद 'बोलनेरूप ( आशातनाकरनेरूप) दुर्लभ बोधिपनेकी हेतुभूत यहभी वीशवी बडी भूल की है।
२१- जैसे श्रीआदीश्वर भगवान् १०८ मुनियों के साथ एक समयमें अष्टापदपर्वत ऊपर मोक्ष पधारे, उनको आश्चर्यरूप कहते हैं, तो भी मोक्ष कल्याणकभी मानतेहैं. तथा श्रीमल्लीनाथ स्वामिके ज. न्म, दीक्षा, व केवलज्ञानकी उत्पत्ति वगैरह सर्व कार्य स्त्रीत्वपने में हुए हैं, उन्होंको आश्चर्य कारक अच्छेरे कहते हैं. तोभी उन्होंकोही जन्म, दक्षिादिक कल्याणकभी मानते हैं । तैसे ही श्रीमहावीरस्वामिके गर्भपहारको आश्चर्य कारक अच्छेरा कहते हैं, तो भी उनको दूसरा च्यवनरूप कल्याणक माननेमें आता है. उसका आशय समझे. बिनाही गर्भापहारको आश्चर्य कहके कल्याणकपनेका निषेध किया सोभी अज्ञानताजनक यह एकशिवीभी बडी भूल की है। २२- जैसे श्रीसिद्धसेनदीवाकरसूरिजी महाराजने उजेनीनगरीमें
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