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[४४] ज्यके भागी होते हैं, और अपने कुलको गच्छको समुदायकोभी स. द्वतिके भागी बनाते हैं व आपभी अपनी आत्माको निर्मल करके अल्पकालमें निर्वाण प्राप्त करनेवाले होते हैं, गणधरादि उपकारी महाराजोंकी तरह। इसलिये संसारसे डरनेवाले आत्मार्थियों को झू. ठा आग्रह छोडकर वगर बिलंबले सत्यग्रहण करना चाहिये, और अन्यभव्य जीवोकोभी सत्य ग्रहण करवाना चाहिये । इसको विशेष विवेकी निष्पक्षपाती पाठक गण स्वयं विचार लेवेगे।
४७-सुबोधिका-दीपिका-किरणावली वगैरहके
पर्युषणा व छ कल्याणक संबंधी शास्त्रविरुद्ध ... . भूलोको सुधारनेकी खास आवश्यकताहै.
१. जैनपंचांगके अभावसे अभी महीना बढे तो भी "जैन टिप्पणाकानुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगं ते चाषाढ एव वर्धते, नान्येमासा स्तट्टिप्पणकं तु अधुना सम्यग् न शायते,ततः पंचाश तैव दिनैः पर्युषणा संगतेति वृद्धाः" इस वाक्यसे सुबोधिका--दीपिका-कीरणवली इन तीनों टीकाकारोने अपने तपगच्छकेही पूर्वाचायोकी आज्ञासे ५० दिने दूसरे श्रावणमें या प्रथम भाद्रपद में पर्युष. णापर्वकी आराधना करनेका लिखा, फीर उसीकोही उत्थापन करनेके लिये शास्त्रविरुद्ध होकर कुयुक्तियोंका संग्रह किया है, यह स. बसे बडी प्रथम भूलकीहै, उसको वगर विलंबसे खास सुधारनेकी आवश्यकता है। : २-निशीथ चूर्णिमें आधिक महीनेको कालचूला कहकर उसके ३०दिन पर्युषणासंबंधी गिनतीमें लियेहैं, उसकोभी कालचूलाके नामसे निषेध किये सो दूसरी भूलकी है। . ३-निशीथ चूर्णिके अधिकमासके अभाव संबंधी अधूरे २ पाठ भोलेजीवोंको बतलाकर अभी दो श्रावण होवे तबभी जिनालाविरुद्ध ८० दिने पर्युषणाहोनेका भय न करके भाद्रपद में पर्युषणा करनेका ठहराया सो तीसरी भूलकी है।
४- अधिक महीने के अभावसे सामान्यतासे पर्युषणाके पि. छाडी कार्तिकतक ७० दिन रहनेका कहा है, उसको समझे बिना अधिक महीना होवे तब विशेषतासे १०० दिन होते हैं उसकी जग. इभी ७० दिन रहनेका आग्रह कियासो चौथी भूलकी है।
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