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[ge 1 पिकाडी कार्तिक तक 9 दिन स्वभावसेही रहते है तैसेही २० दिने पर्यषणा करनेसे भी पिछाडी कार्तिक तक १०० दिनो स्वयं समझना चाहिये तथापि चंद्र संवत्सर में भाद्रपदकी तरह अभिवर्द्धित संवत्सर, श्रावणमें पर्युषणा करनेका तथा पर्यषणाके पिछाडी 90 दिनकी तरह १०० दिन रहनेका कहाँ कहा है, ऐसी प्रत्यक्ष अज्ञानताको सूचक कुयुक्ति करके बाल जीवोंको भ्रमानेसे कर्म बंधके सिवाय और कुछमी लाभ नहीं होने वालाहै । क्योंकि जिन जिन शास्त्रों में चंद्रसंवत्सर,५० दिने भाद्रपदमैं पर्युषणाकरके पिछाडी ७० दिन कार्तिक तकका लिखाहै और अभिवर्द्धितमें २० दिने पर्यषणा करनेका भी लिख दियाहै उसी शामता पाटोंके भावार्थ से अभिवर्द्धितमें २० दिने प्रावणमें पर्यषणा करनेका और पर्यषणा के पिछाडी १०० दिन रहनेका स्वयं सिद्ध है सोतो अल्प मतिवालेभी समझसकते हैं।
और फिरभी २० दिनको ज्ञात तथा निश्चय और प्रसिद्ध पर्यषणामें वार्षिक कृत्यों का निषेध करने के लिये आषाढ पूर्णिमा की अज्ञात तथा अनिश्चय और अप्रसिद्ध पर्युषणामें वार्षिककृत्यकरनेका दिखातेहै सोमी अज्ञानताकासूचक है क्यों कि वर्षकी परतीहुये बिना तथा अज्ञात पर्युषणामें वार्षिक कृत्य कदापि नहीं होसकते हैं किन्त वर्ष की पूर्तिहोनेसे जात पर्युषणामें वार्षिक कृत्य हेाते हैं और अधिक मास होनेसे श्रावणमें १२ मासिक वर्ष पूरा होजाता है इसीलिये श्रावण में जातपर्युषणा करके वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादिक कार्य करने में आते हैं।
और मासद्धि होतेभी भाद्रपदमें पर्युषणा स्थापन करने के लिये श्रीजीवाभिगमजी सत्रका एकपदमात्र लिखदिखाया
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