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[४४४ ] अधिक मासः क्षयमासश्चेति । तदुक्तं काठक गृह्ये । यस्मिन् मासे न संक्रांति । संक्रांति द्वयमेववामलमासः। सविर्जयो मासः स्यातु त्रयोदशः। तथा चोक्तं हेमाद्रि नागर खंडे । नभो वा मभस्योवा मलमासा यदा भवेत् सप्तमःपित पक्षस्यादन्यत्रैवतु पंचमः ॥ ___ अब देखिये उपरोक्त शास्त्रों के पाठोंसे लौकिक शास्त्रों में अधिक मासके दिनोंकी गिनती करीहे इसलिये निषेध करने वाले गच्छकदाग्रहसे अज्ञानता करके प्रत्यक्ष मिथ्या भाषण करने वाले बनते हैं सोता पाठक वर्ग स्वयं विधार सकते हैं। ____और अधिक मासको बारह मासे जदा गिनके तेरह मासे का वर्ष कह तथा अधिक मासको जदा न गिनके संयोगिक मासके साथ गिने तो ६० दिवसका महिना मान के बारह मासका वर्षकहे तोओ तात्पर्याय सेतो दोनों तरह करके अधिक मासके दिनोंकी गिनती लौकिक शास्त्रोंमें प्रगटपने कही है इस लिये निषेध नही होसकतीहै। ___और संक्रांति रहित अधिक मासको मलमास कहा तैसेही दो सक्रांति वाले क्षयमासको भी मलमास कहाहै सो चैत्रसे आश्विन तक सात मासों में से हरेक अधिक मास होते हैं तैसेही कार्तिकसे पौष तक तीनमासों में से हरेक मास क्षयभी होते है और जैसे तीसरे वर्ष अधिक मास होता है सो प्रसिद्ध है तैसेही कालांतर में क्षय मासभी होताहैं सो लौकिक शास्त्रों में प्रसिद्ध है । ___ औरमारुद्धि के अभावमें आषाढ़ चौमासीसेपंचम पितृपक्ष होताहै परंतु श्रावण भाद्रपद मासदी वृद्धि होनेसे अधिक मासके दोनोपक्षोंकी गिनती पूर्वक सप्तम पितृपक्ष लिखा है।
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