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सहित १३ महीनोंका अभिवर्द्धित वर्ष कहने में आता है । इसलिये अधिक महीना व मेरुचूलिका वगैरह सब विशेषतासे गिनती में आते हैं, जिसपर चूलिका के नामसे अधिक महीना गिनती में निषेध करते है सो अज्ञानता है, इसको विशेष विवेकी तत्त्वज्ञ पाठक गण स्वंय विचार लेवेंगे ।
३८ - पर्युषण पर्व शाश्वत है, या अशाश्वत है ?
यद्यपि भरतक्षेत्र में व ऐरवर्तक्षेत्र में चौवीस तीर्थंकर महा राजों में प्रथम और चौवीसवें तीर्थकर महाराजके साधुओंकों चौ माला ठहरने व पर्युषण पर्व करने संबंधी निज निज तीर्थकी अपेक्षासे तो पर्युषणापर्व अशाश्वत है, मगर अनादि कालकी अपेक्षासे तो शाश्वतही है. इसलिये तीनों चौमासीपर्व या पर्युषणापर्व वा आसो चैत्र की ओलियों की अठ्ठाई आनसे, भुवनपति - व्यंतर - ज्योतिषी और वैमानिक इंद्रादि असंख्य देव देवी, अपने समुदाय सहित देवलोक संबंधी अनंत सुखको छोडकर, आठवा नंदीश्वरद्वीपमें जाकर, asi शाश्वत चैत्योंमें जिनेश्वर भगवान् के शाश्वत जिन बिंबोकी जल - चंदन पुष्पादिसे द्रव्यपूजा व स्तवन-नाटक- वाजित्रादिसे भावपूजा करते हुए महोत्सव करके अपनी आत्माको निर्मल करते हैं । यह अधिकार श्री जीवाभिगमसूत्र व उसकी टीकामै खुलासा लिखा है. इसी प्रकार पर्युषणादि पर्व आराधन करनेके लिये श्रावकों को भी विशेष रूपले धर्मकार्य करने योग्य हैं इसका विशेष खुलासा 'पयुषणा अठ्ठाई व्याख्यान' में और कल्पसूत्रकी सबी टीकाओ में प्रकट ही है, इसलिये यहां विशेष लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है । ३९ - पर्युषणाके विवाद संबंधी सत्यकी परीक्षा करो.
जिनाशानुसार सत्यग्रहण करनेवाले आत्महितेषी सज्जन को निवेदन किया जाता है, कि - आगम-- - निर्युक्ति-भाष्य - चूर्णि वृत्ति प्रकरणादि प्राचीन व आजकालके पर्युषणा संबंधी सबी शास्त्रोंके पाठका व सभी गच्छोंके पूर्वाचार्योंके वचनोंका इसग्रंथ में मैने संग्रह किया है । और इस भूमिका में भी वर्तमानिक सभी शंकाओं का नंबर वार क्रम से समाधानभी खुलासापूर्वक करके बतलाया है । औ. रसग्रंथ में अधिक महीनेके ३० दिनोंकों गिनती में निषेध करनेवाले प्रत्येक लेखकों के सबी लेखों को पूरेपूरे लिखकर पीछे सब लेखोकी
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