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[ ४५ ] सब लेखाँको शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक सिद्धकर दिखावो नहीं दिखाओ तो उसीकी आलोचना लेकर सत्य बातोंको ग्रहण करो और अपने सब लेखोंको शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक सिद्ध नहीं करोंगे तथा अपनी भूलोंकी आलोचना भी नहीं लेवोंने औरसत्य बातोंको ग्रहण भी नहीं करेंगे तबतक मैंरे लेखकी समालोचना करनेकी आपमें योग्यता प्राप्त नहीं हो सकेगी लथापि आप केवल अपनी विद्वत्ताकी शर्म-केमारे, लौकिक लज्जासे अपनी उत्सूत्र भाषणोंकी तथा प्रत्यक्ष मिथ्या (पर्युषणा विचारके) लेखांकी भूलोंको छुपा करके शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक सत्य बातोंके सम्बन्धका सब लेखको छोड़ करके बिना सम्बन्धका अधरा लेखकी कुयक्तियों के बिकल्पों से समालोचना करके शास्त्र मर्यादा पूर्वकके बहाने मुग्ध जीवोंको मिथ्यात्वमें फंसानेके लिये पर्युषणा विचार के लेखकी तरह फिर भी उद्यम करोंगे तो उसी भी सबकी समालोचना करके आपके अन्यायके पाषण्डको शांत करनेके लिये मैंरेको जलदीसे लेखनी चलानी ही पड़ेगी इसमें फरक नहीं समझना ;. और पर्युषणा विचारके दशवे पृष्टकी १९ वीं पक्लिसे दश पृष्टके अन्त तक लिखा है कि ( पाठक महाशयोंको पक्षपात शून्य होकर निबन्ध देखने की सूचना दी जाती है स्नेहरागके वस होकर असत्यको सत्य नहीं मानना और गतानुगतिक नहीं बनना तत्वान्वेषी बनकर जल्दी पद्ध व्यवहारको स्वीकार करके भगवान् की आज्ञानुसार भाद्र मुदी चौथ के दिन सांवत्सरिक वगैरह पांच कृत्योंका आरा. धमकरके थोड़ेभवमें पञ्चमचानके हागीबनो इसतरण
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