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[ ] स्वकी प्राप्ति होती है तो फिर दूसरे भाद्रपदमें ८० दिने पर्य। पणा करना सो तो कदापि श्रीनिमाजामें नहीं आ सकता है से भी विवेकी पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे;- . __ और शास्त्रानुसार भावपरंपरा करके तथा युक्तिपूर्वक और लौकिक व्यवहार मुजब अधिक मास होनेसे नैमित्तिक कार्य आगे पीछे दोनों मासमे करने में आते हैं सोता सातवें महाशयजीके पूर्वजने भी लिखा है जिसका पाठ ऊपरही लिखने में आया है तथापि सातवें महाशयजो प्रथम मासको छोडकरके दूसरे मासमें नैमित्तिक कार्य करनेके लिये “वैसा नहीं करोगे तो विरोधके परिहार करने में भाग्य. शाली नहीं बनोगे ऐसे अक्षर लिखके प्रथम मासमें नैमित्तिक कार्य करने वालोंके विरोध दिखाते हैं से कोई भी शास्त्र के प्रमाण बिना अपनी मति कल्पनासे झाले जीवोंको भ्रममे गेरने के लिये अपने पूर्वजके वचनको भी विरोध दिखाने वाले सातवें महाशयजी जैसे कलियुगि विनीत प्रगट हुवे है तो अपने पूर्वजोंको खेाटे कहके आप अले बनते हैं इसलिये आस्मार्थियों को इन्हकी कल्पित बात प्रमाण करने योग्य नही है,___ और (कदाग्रह न छूटे तो भले खपरंपरा पाले) सातवें महाशयजीका यह भी लिखना भोले जीवोंको कदाग्रहमें कंसाकर मिथ्यात्वको बढ़ानेवाला है सौता इसीही ग्रंथके पृष्ठ २ से ३४२ तकका लेख पढनेसे मालम हो सकेगा परंतु सातवें महाशयजीने अपरके लेखमें अपने अन्तरके भावका सूचन क्रिया मालूम होता है क्योंकि सातवें महाशयजी बहुत बात काशी में ठहर कर अपनी विद्वत्ता प्रगट कर रोई
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