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[ ४१३ ] पंक्तिमें गिनने योग्य है सो तो इस ग्रन्थ को संपूर्ण पढ़नेवाले विवेकी सज्जन स्वयं विचार सकते हैं :
और दो श्रावण तथा दो भाद्रपद और दो आश्विन हो तोभी आषाढ चौमासीसे ५० दिने दूसरे श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्र में पर्युषणा करनी चाहिये जिससे पिछाडी १०० दिने चौमासी प्रतिक्रमण करनेमें आवे तो कोई दूषण नहीं है किन्तु शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक है इसका विशेष विस्तार पहिलेही छप चुका है। और नवमे पृष्ठके मध्य में तिथिसंबंधी लिखा है जिसकी तो समीक्षा आगे लिखंगा परन्तु आठवें पृष्ठके अन्तमें तथा नवमे पृष्ठके आदि अन्त में
और दशवे पृष्ठकी आदिमें छट्ठी पंक्ति तक लिखा है कि(जैसे फाल्गुन और आषाढकी वृद्धि होने पर दूसरे फाल्गुनने
और दूसरे आषाढमें चौमासी प्रतिक्रमणादि करते हो, उसी तरह अन्य अधिक मासमें भी दूसरेहीमें करना वाजिब है। वैसा नहीं करोगे तो विरोधके परिहार करने में भाग्यशाली नहीं बनोगे। एक अधिकमासमानने में अनेक उपद्रव खरे होते हैं और अधिकमासको गिनती में न लेनेवालेको कोई दोष नहीं है । उसी तरह तुम भी अधिक मासको निःसत्व मानकर अनेक उपद्रव रहित बनो।
इस रीतिको व्यवस्था रहते हुए कदाग्रह न छटे तो भले स्वपरम्परा पाली परन्तु स्वमन्तव्य में विरोध न आवे ऐसा वर्तावकरना बुद्धिमानपुरुषोंका काम है। जैसे फाल्गुनके अधिक होनेपर दूसरे फाल्गुनमें नैमित्तिक कृत्य करते हो उसी तरह अन्य अधिकमास आने पर दूसरे महीने में मितिक कृत्योंके करनेका उपयोग रक्सो कि जिसमें कोई
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