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मिथ्या है क्योंकि वनस्पतिका फलना और फलोंका, फलोंका उत्पन्न होना सा तो समय, हवा, पानी, ऋतुके, कारणसे होता है इसलिये वनस्पतिको समय ( स्थिति ) परिपाक न हुई होवे तथा हवा भी अच्छी न होवे जलका संयोग न मिले तो अधिक मासके बिना भी वनस्पति नहीं फलती है और फल भी उत्पन्न नही होते हैं और अधिक मासमें भी स्थिति परिपक्व होनेसे हवा अच्छी लगनेसे जलका संयोग मिलनेमें फलती है और फलोंकी, फलोंकी उत्पत्ति भी होती है। ___और जैसे बारह मासांमें उत्पन्न होना, वृद्धि पामना, पालमा, फलना, नष्ट होना, वगैरह वनस्पतिका स्वभाव है तैसेही अधिक मास होनेसे तेरह मास में भी है सो तो प्रत्यक्ष दिखता है।
और 'जो फल प्रावण मासमें उत्पन्न होनेवाला होगा सो पहिले प्रावणमें न होते दूसरे प्रावणमें होगा' ऐसा भी सातवे महाशयजीका लिखना अजातसूचक और मिथ्या है क्योंकि जैन पञ्चाङ्गमें और लौकिक पञ्चाङ्गमें अधिक मासका व्यवहार है परन्तु मुसलमानोंमें, बङ्गलामें, अंग्रेजीमें, तो अधिकमासका व्यवहार नहीं है किन्तु अनुक्रमसें मासांकी तारीख मुजब व्यवहार है जब लौकिकमें अधिक मास होनेसे अधिक मासमें वनस्पतिका फूलना, फलना नही होनेका सातवें महाशयजो ठहराते हैं तो क्या लौकिक अधिकमासमें जो मुसलमानांकी, बङ्गलाकी और अंग्रेजीकी ३० तारीखेांके ३० दिन व्यतीत होवेंगे उसीमें भी वनस्पतिका पूलना फलना नहानेका सातवे महा.
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