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________________ [ ३८१ ] भङ्गके दूषण से डरनेवाले अन्य कल्पना कदापि नहीं करेंगे सो विवेकी सज्जन स्वयंविचार लेवेंगे। और सातवें महाशयजी १६ दिनका पक्षमें १५ दिनके क्षामणे करने में एक दिनका प्रायश्चित बाकी रहने संबंधी और १४ दिनका पक्षमें भी १५ दिनके क्षामणे करनेमें एकदिन का बिना पाप किये भी प्रायश्चित ज्यादा लेने सम्बन्धी ऊपरके लेखसे ठहराते हैं सो निःकेवल अज्ञातपनसे व्यव. हार नयका भङ्ग करते हैं जिससे श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञा उल्लंघन रूप उत्सूत्र भाषक बनते हैं सो भी पाठकवर्ग विचार लेवेंगे। और यद्यपि श्रीजैनपञ्चाङ्ग की गिनतीसें तिथि की वृद्धि होनेका अभाव था तथा पौष और आषाढ़ मासकी वृद्धि होनेका नियम था परन्तु लौकिक पञ्चाङ्गमें तिथि की वृद्धि होनेका गिनती मुजब नियम है और हरेक मासोंकी वृद्धि होनेका भी नियम है । जब जैन पञ्चाङ्गके बिना लौकिक पञ्चाङ्ग मुजब तिथि को वृद्धिको सातवें महाशयजी मान्य करके सोलह (१६) दिनका पक्षको मंजूर करते हैं तो फिर लौकिक पञ्चाङ्गानुसार श्रावण भाद्रपदादि मासोंकी वृद्धि होती है जिसको मान्य नहीं करते हुवे उलटा निषेध करनेके लिये पर्यषणा विचारके लेखमें वृथा क्यों परिश्रम करके निष्पक्ष. पाती विवेकी पुरुषों से अपनी हांसी कराने में क्या लाभ उठाया होगा सो मध्यस्थ दृष्टिवाले सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे. और ( जैसे तुम्हारे मतमें 'चतरहं मासाणं' इत्यादि पाठ कहने से अधिक मासका प्रायश्चित्त रह जाता है) सातवें महाशयजीके ऊपरके लेखपर मेरेको इतनाही कहना है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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