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होगे, उतनेही रोजके मौकी निर्जरा होगी किंतु ज्यादे कम नहीं होगी, इसलिये निश्चय और व्यवहार के भावार्थको समझे बिना श ब्दमात्रको आगे करके विवाद करना विवेकी आत्मार्थियोंकों तो योग्य नहीं है । इसका भी विशेष खुलासा इसी ग्रंथ के क्षामणासंबंधी लेखसे जान लेना ।
३३- अपेक्षा विरुद्ध होकर आग्रह करना योग्य नहीं है ।
मासवृद्धि के अभाव में महीनों के चौमासीक्षामणे, व १२ महीनोंके संवच्छरीक्षामणे करनेका कहा है, उसकी अपेक्षा समझेबिनाही मास बढने पर भी उसी पाठको आगे करना और ५ मास १० पक्ष, व १३मास २६पक्ष शास्त्रोंमें लिखे हैं, उन पाठोको छुपादेना. तत्त्वज्ञ आमार्थियो को योग्य नहीं है । इसीतरह पौष व चैत्रादि महीने बढे तब प्रत्येक महीने के हिसाब से विहार करनेवाले मुनिमहाराजोको एक कल्प चौमासेका और नवमहीनोंके नवकल्प मिलकर दशकल्पीविहार प्रत्यक्षमें होता है । जिसपरभी महीना बढनेके अभाव संबंधी एककल्प चौमासेका और महीनोंक ८ कल्पमिलकर ९ कल्पीविहार करनेका पाठ बतलाना और मास बढे तबभी दशकल्पी विहारको निषेध करनेके लिये भोलेजीवों को संशय में गेरना विवेकी सज्जनोंको योग्य नहीं है । इसीतरह मासबढनेके अभावकी अपेक्षासंबंधी हरेक बातोंको मास बढनेपर भी आगेलाकर उसका आग्रह करना सर्वथा अनुचित है इसको विशेष विवेकी तश्वश पाठक गण स्वयं विचार लेवेंगे |
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३४ - विषयांतर करना योग्य नहीं है ।
५० दिनोंकी गिनती से दूसरे श्रावण में या प्रथम भाद्रपद में पर्युषण पर्व करनेकी सत्यबात ग्रहण करसकतेनहीं और पचास दिनोंकी गिनती उडानेक्रेलिये ऐसा कोई दृढ बाधक प्रमाणभी दिखा सकते नहीं, इसलिये दिन प्रतिबद्ध पर्युषणाका विषय छोडकर होली, दिवाली, ओली आदिक मास प्रतिबद्ध कार्योंका विषय बीच में लाते हैं, सो असत्य आग्रहका सूचनरूप विषयांतर करना योग्य नहीं है । क्योंकि ऐसे तो मासप्रतिबद्ध कार्यों में या मुहूर्त प्रतिबद्ध कार्यों में कितने ही महीने, कितनेही वर्षभी छूट जाते हैं. देखो - मास प्रतिबद्ध कार्य तो एक महीने से करनेके होंवें सो अ धिक महीना होवें तब एक महीने की जगह कितनेक पर्व दूसरे
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