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[ ३६५ ] निषेध करनेके लिये कटिबद्ध तैयार है तो फिर तेरह मास छवीस पक्ष कहेंगे ऐसा तो संभव ही नहीं हो सकता है। जब अधिक मासको गिनतीमें लेनेको ही जिन्हको लज्जा आती है तो फिर तेरह मास छवीश पक्ष कहना तो विशेष उन्हको लज्जाकी बात होवे तो कोई आश्चर्य नहीं है। ___ और सातवें महाशयजी शास्त्रोंके पाठ मंजूर करने वाले होवें तो फिर अधिक मासको श्रीअनंत तीर्थङ्कर गण. धरादि महाराजोंने प्रमाण किया है जिसका अधिकार इसी ही ग्रन्थके पृष्ठ ३२ से ४८ तक वगैरह कितनी ही जगह छप गया है और सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते का उच्चारण किये पीछे इरियावही करनी वगैरह अनेक बातें शास्त्रों में विस्तारपूर्वक कही है जिसको तो प्रमाण न करते हुवे उलटा उत्थापन करते हैं फिर शास्त्रके पाठकी बात करमा सो कैसी विद्वत्ता कही जावे इस बातको पाठक. वर्ग भी विचार सकते हैं।
शंका-अजी आप ऊपरमें अनेक शाखोंके प्रमाणोंसें और युक्तियों से तेरह मास छबीश पक्षकी गिनती करके उतनीही आलोचना लेकर उतनेही क्षामणे सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करनेका दिखाते हो परन्तु सांवत्सरिक प्रति क्रमणकी विधिमें ३ मास, २६ पक्षके, क्षामणे करके उतने ही भासोंकी मालोचना लेनी किसी शाबमें क्यों नहीं डिसी है।
समाधान-भो देशानुप्रिय ! सांवत्सरिक प्रतिक्रमबकी विधि में १३ मास, २६ पक्ष के क्षामणे करके उतने ही मास पक्षोंकी आलोचमा लेनी किसी भी शाखा में नहीं लिखी है यह तेरा कहना अज्ञात सूचक है क्योंकि श्रीकाब.
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