________________
[ ३४१ ]
श्रावण में पर्युषणा करने वालोंको मूलमन्त्रको अलग छोड़ने सम्बन्धी सातवें महाशयजीका लिखना मिथ्या है और सातवें महाशयजी अनेक बातोंमें मूलमन्त्ररूपी अनेक शास्त्रों के मूलपाठोंको जानते हुवे भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्व के अधिकारी बन करके अलग छोड़ते हैं सोही दिखाता हूं ;--
१ प्रथम -- - हर वर्षे गांम गांममें वंचाता हुवा सुप्रसिद्ध श्री कल्पसूत्र में पर्युषणा सम्बन्धी मूलमन्त्ररूपी विस्तारसें पाठ है उसीके अनुसार इस वर्तमान काल में श्रीजिनाज्ञाके आराधक आत्मार्थी प्राणियों को पर्युषणा करनी चाहिये तथापि सातवें महाशयजी अभिनिवेशिक मिध्यात्वको सेवन करते हुवे ( श्रीकल्पसूत्रका मूलमन्त्ररूपी पाठ हसीही ग्रन्थके पृष्ठ ४ । ५ में छप गया है ) उसीको जानते हुवे भी अलग छोड़ते हैं और श्रीकल्पसूत्र के पाठानुसार दूसरे श्रावमें पर्युषणा करने वालोंको झूठे ठहराकर मिथ्या 'दूषण लगाते हुवे निषेध करते हैं इसलिये शास्त्रानुसार वर्त्तने वालों की वृथा निन्दा करके श्रीजिनाज्ञारूपी सत्यधर्मकी अवहेलना । ( तिरस्कार ) करने वाले काशी निवासी सातवें महाशयजी श्रीधर्मविजयजी है ।
२ दूसरा - श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने अनन्त काल हुवे अधिकमासको गिनती में खुलासा पूर्वक प्रमाण किया है तथा आगे करेंगे और सूत्र, निर्युक्ति, भाव्य, चूर्णि, वृत्ति, प्रकरणादि अनेक शास्त्रों में अधिक मासको गिनती में लेने सम्बन्धी विस्तार पूर्वक पाठ है सो कितनेही तो इसीही ग्रन्थके पृष्ठ २१ से ६५ तक छप गये हैं.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com