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[२९] ३०- अधिक महीना होवे तब तेरह महीनोंके
संवच्छरी क्षामणा संबंधी खुलासा. जैसे इन्हीं भूमिकाके पृष्ठ २२ वेके मध्यमे २२ वें नंबरके लेख मुजब वार्षिक कार्य १२ महीनेभी होवे, और महीना बढे तब तेरह महीनेभी होवें । तैसेही संवच्छरीक्षामणेभी१२ महीनेभी होवें और महीना बढे तब १३ महीनेभी होवें। देखो - चंद्रप्राप्ति सूत्रत्ति, सूर्यप्रज्ञाप्तमूत्रवृत्ति, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रवचनसारोद्धार, ज्योति
करंडपयन-निशीथचूणिवगैरह अनेक प्राचीन शास्त्रोंमेभी, महीना बढे तब उस वर्षके१३ महीनोंके२६पक्ष खुलासा पूर्वक लिखे हैं.इस लिये१३ महीने२६पक्षक संवच्छरीक्षामणे करने, ऊपर मुजब अनेक प्राचीन शास्त्रानुसार हैं । जिसपरभी कोई कहेगा, कि-उन शस्त्रोंमें तो १३ सहीने २६ पक्षके संवच्छरीमें क्षामणे करनेका नहीं लिखा मगर ऐसा कहनेवालोको अतीव गहनाशयवाले शास्त्रोके भावार्थको समझमें नहीं आया मालूम होता है, क्योकि- उन शास्त्रोमें पक्षका,चौमासेका ववर्षका गणितसे जो जो प्रमाण बतलाया है उन्हीं शास्त्रोके उसी प्रमाण मुजब, पाक्षिक, चौमासी व वार्षिक पर्वादि. कार्य करनेमें आते हैं, इसलिये जिस वर्षमे १२ महीनोंके २४ पक्ष होवे,उसी वर्ष १२महीनोंके २४पक्षोंके संवच्छरी प्रतिक्रमणमें क्षामणे करनेमें आते हैं । उसी मुजब जिस वर्षमें अधिक महीना होनेसे १३ महीनोंके २६ पक्ष होवें तब उस वर्ष में १३ महीनोंके २६ पक्षोके संवच्छरी प्रतिक्रमणमें क्षामणे करनेमें आते हैं । इसलिये उन शास्त्रमें १३ महीनोके क्षामणे नहीं लिखे ऐसा कहना प्रत्यक्ष मिथ्या होनेसे अज्ञानताका कारण है।
और आवश्यक बृहद्वृत्ति वगैरह प्राचीन शास्त्र में जहां जहां वार्षिक प्रतिक्रमणका अधिकार आया है, वहां वहांभी 'संवच्छर' शब्द लिखा है. सो संवच्छर शब्दके १२ महीनोंके २४ पक्ष, व १३ महीनोंके २६ पक्ष, ऐसे दोनों अर्थ आगमोमें प्रसिद्धही है, इसलिये १२ महीनोंके २४ पक्षका अर्थ मान्य करके क्षामणोमें बोलना और १३ महीनोंके २६ पक्षका अर्थ मान्य नहीं करना व क्षामणेभी नहीं बोलना, यह तो प्रत्यक्षमही आगमार्थ के उत्थापनका आग्रह करना सर्वथा अनुचित है, इसलिये दोनों प्रकारके अर्थ मान्य करके उस मुजब प्रमाण करना आत्मार्थी सम्यक्त्व धारियोंको योग्यहै. इसको
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