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रूपी मिध्यात्वको बढ़ाने वाला भंगड़ा ( अविसंवादी श्रीजैनशासन में इस वर्त्तमान कालके बालजीवोंकी श्रद्धाभ्रष्ट करने के लिये) श्रीआत्मारामजीने अपनी विद्वत्ताके अभि मान से खूबही फैलाया है ;
और सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिक्षंतेका उच्चारण करनेका निषेध करके प्रथम इरियावही स्थापन करने सम्बन्धी ऊपरोक्त जैनसिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तक में जैसे उत्सूत्र भाषणों से मिथ्यात्व फैलाया है तैसेही श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक निषेध करके पाँच कल्याणक स्थापन करने वगैरह कितनी बातों में भी खूबही उत्सूत्र भाषणों से मिथ्यात्व फैलाया है जिसका खुलासा आगे लिखुंगा –
और श्रीआत्मारामजीको अपने पूर्व भवके पापोदयसें पहिले ढूंढियोंके मिथ्या कल्पित मतमें दीक्षा लेनी पड़ी थी वहाँ भी अपने कल्पित मतके कदाग्रहकी बात जमाने के लिये अनेक शास्त्रोंके उलटे अर्थ करते थे तथा अनेक शास्त्रोंके पाठोंको छोड़के अनेक जगह उत्सूत्र भाषण करके संसार वृद्धिका भय न करते हुवे भोले दृष्टिरागियोंको मिथ्यात्वकी भ्रमजाल में गेरते थे और मिथ्यात्वरूप रोगके उदयसे श्री जिनेश्वर भगवान्की आज्ञा मुजब सत्य बातोंको कल्पित समझते थे और श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञा विरुद्ध अपने मत पक्षकी कल्पित मिथ्या बातोंकों सत्य समझते थे और हजारों श्रीजैन शास्त्रोंको उत्थापन करके सत्य बातोंके निन्दुक शत्रु बनते थे इत्यादि अनेक तरहके कासे अपने ढूंढक मतकी मिथ्या कल्पित बातोंको पुष्ट करके अपने मतको फैलाते थे परन्तु कितनेही वर्षे के बाद अपने पूर्व भवके महान् पुष्पोदय होनेसे ढूंढकमतके पाख
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