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श्री कल्पसूत्र के पाठसे तथा तद्पाठकी व्याख्यासें आप अज्ञ होवेंगे अथवा तो भोले जीवोंको गच्छ कदाग्रहका भ्रम में गेरनेके लिये जानते हुवे भी तीसरे अभिनिवेश मिथ्यात्व के आधिन हो करके मायावृत्तिसें लिखा होगा सो विवेकी विद्वान् स्वयं विचार लेवेंगे :
और आगे छठे महाशयजी दम्भप्रियजीमें फिरभी लिखा है कि ( हाँ यदि ऐसा खुलासा पाठ पञ्चाङ्गीमें आप कहीं भी दिखा देवें कि दो श्रावण होवे तो पीछले श्रावण में और दो भाद्रपद होवें तो पहिले भाद्रपद में सांवत्सरिक प्रतिक्रमण, केश लुञ्चन, अष्टमतपः, चैत्यपरिपाटी, और सर्व सङ्घके साथ खानणारूप पर्युषणा वार्षिकपर्व करना तो हम मानने को तैयार है )
श्रीवल्लभविजयजीके इस लेखपर मेरेको प्रथमतो इतना ही कहना है कि ५० दिने दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करनें - वालोंको आपने आज्ञा भंगका दूषण लगाया तब श्रीबुद्धिसागरजीनें आपको पत्र द्वारा पूछा कि कौनसे शास्त्रोंके पाठ मुजब ५० दिने पर्युषणा करनेवालोंको आपने आज्ञा भङ्गका दूषण लगाया है सो बतावो इस तरहसें शास्त्रका प्रमाण पूछा उसीको आप शास्त्रका प्रमाणतो बता सके नहीं तब पंडिताभिमान के जोर की मायावृत्तिसे निष्प्रयो-जनकी अन्य अन्य बातें लिखके उल्टा उन्होंने ही शास्त्रका प्रमाण पूछने लगे सो दंभप्रियजी यह आपका पूछना अन्यायकारक है क्योंकि प्रथम आपने ही आज्ञा भंगका दूषण लगाया है इसलिये प्रथम आपको ही शास्त्रका प्रमाण बताना न्याययुक्त उचित है तथापि जब तक आप
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